Current state of democracy, sense of nationalism on the test

Loading

स्वाधीनता की 76वीं वर्षगांठ पर घर-घर तिरंगा लहराने का आवाहन स्वागत योग्य हैं किंतु साथ ही हमें आत्मावलोकन करना होगा कि हमारा देश प्रेम हृदय की स्वाभाविक उपज है अथवा हम इसका दिखावा कर रहे हैं? हमारी राष्ट्रीयता की भावना आज भी कसौटी पर है. क्या हम तुच्छ व्यक्तिगत स्वार्थों, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर राष्ट्र कल्याण के बारे में मंत्री स्तर से सोचते हैं? ऐसा क्यों है कि आजादी के अमृत महोत्सव के बाद भी हम क्षेत्रीयता, जातिवाद, भाषावाद जैसे मुद्दों से ऊपर नहीं उठ पाए है? राष्ट्रीय एकता और अखंडता हमारा सबसे बड़ा ध्येय होना चाहिए. अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की पहचान रही है लेकिन आज वह एकता बिखरती नजर आ रही है जो कि गहरी चिंता विषय है. इतिहास गवाह है कि देशवासियों की इसी फूट का फायदा विदेशी ताकतें उठाती रहीं. हमारे शूरवीरों को यहीं के गद्दारों ने धोखा दिया. पूर्वोत्तर में धधक रही आग, मणिपुर ही नहीं अन्य राज्यों में भी महिलाओं पर हो रहा अत्याचार हमारी लोकतांत्रिक अस्मिता पर उंगली उठाते हैं.

जननेता नहीं धननेता

कभी देश में आम जनता के दुखदर्द को जाननेवाले, उसके भीतर से उपजे जन नेता हुआ करते थे लेकिन अब ऐसे नेता है जो अपनी धनशक्ति की बदौलत राजनीति का सर्कस.. चला रहे है. उनके लिए राजनीति जनसेवा का माध्यम न होकर मोटी कमाई का जरिया बन गया है. कितने ही नेता मनी लांड्रिंग में लिप्त हैं. एसोसिएशन फार डेमोक्रिटिक रिफार्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वाच (एन ई डब्ल्यू) की रिपोर्ट के अनुसार 134 सांसदों और विधायकों पर महिलाओं के विरूद्ध अपराध करने संबंधी केस दर्ज है. 18 सांसद और विधायक ऐसे है जिन पर दुष्कर्म के मामले दर्ज हैं. यदि अन्य अपराधों की समीक्षा की जाए तो गिनती के ही सांसद-विधायक दूध के धुले निकलेंगे.

राजनीति का अपराधीकरण

राजनीति का अपराधीकरण गंभीर समस्या है. जनता को जिन अपराधियों से मुक्ति चाहिए वही उसके प्रतिनिधि बन बैठते हैं. इस वजह से न अपराधों पर अंकुश लग पाता है, न भ्रष्टाचार पर! स्वच्छ प्रतिनिधि राष्ट्र और समाज के लिए बेदाग, शिक्षित आधुनिक और दूरदर्शी जनप्रतिनिधियों की आवश्यकता होती है. खेद है कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने की क्षमता… को आधार बनाकर दागियों को टिकट देती हैं. चुनाव बहुत महंगे हो गए है. जिनमें पैसा पानी की तरह बहाया जाता है इसलिए गरिब या मध्यमवर्ग का व्यक्ति चुनाव लड़कर जीतने की उम्मीद कर ही नहीं सकता.

सहिष्णुता का अभाव

आज की राजनीति रचनात्मक न रहकर विध्वंसक हो गई है जिनमें झूठे वादे और छलकपट दाती.. है. पक्ष-विपक्ष के बीच सौहार्द्र व आपसी सम्मान.. नष्ट हो गया है. वैचारिक मतभेद दुश्मनी में बदलता चला जा रहा है. नेताओं के भाषणों में नीतियों की आलोचना की बजाय व्यक्तिगत आक्षेप अधिक नजर आते हैं. सत्ता की लालसा इतनी तीव्र हो उठी है कि संवैधानिक संस्थाओं को भी कमजोर किया जाने लगा है. नियंत्रण और संतुलन यदि कायम है तो इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान व कानून के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका मजबूत बना रखी है. संसदीय प्रणाली से गरिमा और शालीनता अपेक्षित है लेकिन हंगामा कर उसे बाधित किया जाता है. प्रस्तावों को विचार… के लिए चयन समिति के पास न भेजकर जल्दबाजी में बिना बहस के पारित करा लिया जाता है.

भारत आबादी के लिहाज से विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. इसे महानतम बनाने के लिए जनतांत्रिक मूल्यों का जतन करना होगा. संविधान में वर्णित स्वायत्तता, समानता और बंधुभाव को सच्ची भावना से अंगीकार करना होगा. नेताओं ही नहीं, नागरीकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी.