NCP पर ED का कसता शिकंजा

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    अनिल देशमुख के बाद अब नवाब मलिक की बारी आ गई. महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद पहले सीबीआई ने राज्य में एक्शन की तैयारी शुरू की थी लेकिन राज्य सरकार ने विशेष अधिकार के तहत महाराष्ट्र में सीबीआई की एंट्री प्रतिबंधित कर दी. उसके बाद केंद्र की बीजेपी सरकार ने राज्य के बीजेपी नेताओं के साथ मिलकर आघाड़ी की उन कमजोर कड़ियों को साधना शुरू कर दिया जिससे एक तीर से कई निशाने लगाए जा सकें. इस काम में पहले ईडी को लगाया गया.

    ईडी की मदद के लिए एनआईए को लगाया गया और फिर एनआईए की सहायता के लिए एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) को मैदान में उतारा गया. 84 घंटे चलने वाली देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार की ‘माइक्रो सरकार’ गिरने के बाद राष्ट्र और महाराष्ट्र के बीजेपी नेताओं ने एक तरह से कसम खा ली कि वे शरद पवार और उनकी पार्टी को नेस्तनाबूत कर देंगे. कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि अमित शाह के नेतृत्व वाले सहकार मंत्रालय का सिंगल पॉइंट एजेंडा यह था कि महाराष्ट्र के सहकार अभियान में हुई कथित धांधलियों में पवार चाचा-भतीजे और उन सभी दिग्गजों को हवालात भेज दिया जाए जो इसकी चपेट में आ रहे हैं.

    एनसीपी नेताओं को अपनी चपेट में लेने का काम देवेंद्र फडणवीस के सीएम कार्यकाल में ही शुरू हो गया था जब महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले में 50-60 नेताओं को आरोपी बनाया गया था. उन आरोपियों की सूची में भी पवार चाचा-भतीजा सहित राज्य के कई नेता थे. कांग्रेस के भी कई नेता उस सूची में हैं. इसके बाद महाराष्ट्र की चीनी मिलों की खरीद में हुई कथित धांधली का कच्चा-चिट्ठा स्वयं प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने शाह व मोदी को दिया.

    वैसे इस लिस्ट में कुछ ऐसी चीनी मिलों के भी नाम हैं जिनके संबंध बीजेपी के बड़े नेताओं से हैं. इसके बावजूद सिर्फ उन चीनी मिलों पर कर्रवाई की गई जैसे अजीत पवार द्वारा खरीदी गई जरंडेश्वर चीनी मिल. इस तरह कई नेताओं को लपेटने का काम बड़े पैमाने पर किया गया. एनसीपी के कुछ बड़े नेताओं की वित्तीय गड़बड़ी व अंडरवर्ल्ड कनेक्शन खोजने का काम भी केंद्र की एजेंसियां कर रही हैं.

    मुखर नेताओं को चुप कराने की कोशिश

    राज्य की जनता मानती है कि पिछले 6-8 महीनों में नवाब मलिक ने अपने दामाद के खिलाफ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की कार्रवाई का बदला लेने के लिए जिस तरह केंद्रीय एजेंसियों को निशाना बनाना शुरू किया था, उससे बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा था. बीजेपी ने भी बदला लेने के लिए नारायण राणे, किरीट सोमैया और मोहित कंबोज को लगा रखा है.

    इसके बावजूद नवाब मलिक ने एनसीबी को बुरी तरह एक्सपोज कर दिया और समीर वानखेड़े को महाराष्ट्र से ट्रांसफर कराके ही दम लिया. इससे बीजेपी का भड़कना स्वाभाविक था. मलिक की तरह ही संजय राऊत भी बीजेपी और ईडी के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं. ये दोनों नेता जिस तीव्रता से बीजेपी का विरोध कर रहे हैं, उससे देश भर में बीजेपी के विरोधियों को बल मिल रहा है. पहले अकेली ममता बनर्जी को इसका श्रेय जाता था.

    प्रतिशोध की घातक नीति

    साम, दाम, दंड, भेद के जरिये अपने दुश्मनों को समाप्त करने की मोदी-शाह की रणनीति महाराष्ट्र की राजनीति को प्रदूषित करती नजर आ रही है. वैसे ईडी, सीबीआई और आईटी के अधिकारी जानते हैं कि मंत्री कभी स्थायी नहीं होते. यदि निष्पक्षता बनाए रखने में विफल रहे तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा. एजेंसियों की विश्वसनीयता भी प्रभावित होगी. संजय राऊत चेतावनी दे चुके हैं कि वे ईडी के अधिकारियों को एक्सपोज करने वाले हैं. अब देखना है कि ईडी उन्हें पहले उठाती है या वे ईडी को नीचे गिराते हैं.