राष्ट्रपति प्रत्याशी के बहाने विपक्ष की, मोदी सरकार को शह देने की कोशिश

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    केंद्र में मोदी सरकार का बहुमत और अनेक राज्यों में बीजेपी नेतृत्व के एनडीए की सरकारें होने से ऐसा नहीं लगता कि जुलाई में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बीजेपी को कोई खास चुनौती झेलनी पड़ेगी. यदि केंद्र सरकार ने वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक और टर्म नहीं देने का मन बनाया तो वह उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बना सकती है. 

    वेंकैया को उम्मीदवारी दी तो दक्षिणी राज्यों का भी समर्थन मिल सकता है क्योंकि वे मूलत: आंध्रप्रदेश के हैं. मुद्दा यह नहीं है कि बीजेपी या मोदी सरकार क्या करने जा रही है, देखना यह है कि इस चुनाव में विपक्ष किस प्रकार मोदी सरकार को शह देने की कोशिश करता है? हाल ही में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से नीतीशकुमार की मुलाकात और लंबी चर्चा हुई. इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि विपक्ष नीतीशकुमार को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बना सकता है.

    अटकलें लगाई जा रही हैं कि एनडीए के भीतर अपनी कमजोर होती स्थिति और बिहार की राजनीति में बनते नए समीकरण को देखते हुए मुख्यमंत्री व जदयू नेता नीतीशकुमार एनडीए से बाहर हो सकते हैं. अभी उन्हें अपने राज्य में बीजेपी के दबाव के तहत काम करना पड़ रहा है. 

    ‘सुशासन बाबू’ कहलाने वाले नीतीशकुमार की राजनीतिक छवि काफी साफ-सुथरी है. वे पहले यूपीए में रह चुके हैं. जब तेजस्वी यादव से मतभेद बढ़े तो नीतीशकुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद जब राज्य विधानसभा के चुनाव हुए तो नीतीश ने बीजेपी के सहयोग से सरकार बना  ली थी.

    चंद्रशेखर राव के प्रयास

    विपक्ष को एकजुट करने में लगे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव किसी सर्वमान्य नेता को राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. उन्होंने इसके लिए नीतीशकुमार और शरद पवार के नाम सुझाए हैं. जहां तक शरद पवार का सवाल है, वे फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं. राजनीति में अपनी सीनियारिटी की वजह से वे तभी ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर सकते हैं जब सारे विपक्षी दल उन्हें अपना उम्मीदवार बनाने पर राजी हों तथा उन्हें वोटों का गणित अपने पक्ष में जाता दिखाई दे. 

    इसलिए पवार को राजी कर पाना आसान नहीं है. माना जा रहा है कि चंद्रशेखर राव इस मामले पर शीघ्र ही नीतीशकुमार से मुलाकात कर सकते हैं. हाल ही में राव ने मुंबई आकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से चर्चा की थी. अब वह जल्दी ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और केरल के सीएम पिनराई विजयन से मिलने वाले हैं. इसके अलावा बंगाल की मुख्यमंत्री व टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी भी शीघ्र ही हैदराबाद जाकर के.चंद्रशेखर राव से मिलने वाली हैं.

    क्षेत्रीय दलों की हलचल क्यों?

    क्षेत्रीय पार्टियां राष्ट्रपति चुनाव के निमित्त से बीजेपी को पछाड़ने व कमजोर करने की तैयारी में जुट गई हैं. इन पार्टियों को आशंका है कि यदि बीजेपी ताकतवर होती चली गई तो वह क्षेत्रीय दलों को कमजोर या समाप्त कर देगी. इस समय निगाह यूपी विधानसभा चुनाव नतीजों पर रहेगी कि क्या वहां बीजेपी की पकड़ कमजोर होती है? यूपी के अलावा महाराष्ट्र और बंगाल की राष्ट्रपति चुनाव में विशेष अहमियत है. 

    सांसद और विधायक का आबादी प्रतिनिधित्व के आधार पर मतमूल्य निर्धारित होता है. पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों का मतमूल्य कम है. यूपी के अलावा महाराष्ट्र व दक्षिण के सभी राज्य राष्ट्रपति चुनाव का आधा मतमूल्य पूरा करते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में 10,98,903 कुल मत हैं. जीतने के लिए 5,49,452 मत हासिल करना जरूरी है. अकेले यूपी का ही मत मूल्य 83,824 है.

    नीतीश ही क्यों?

    ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश के नाम पर मुलायमसिंह यादव, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, पिनराई विजयन, अकाली दल, आप, नेकां, पीडीपी तैयार हो जाएंगे. उत्तर भारत के सांसद-विधायक भी नीतीशकुमार के पक्ष में मत दे सकते हैं. अभी इन हलचलों से स्वयं को अनभिज्ञ बताने वाले नीतीश कुमार संभवत: मौके पर अपना मन बना सकते हैं.