दक्षिण भारत से BJP को कितनी उम्मीद

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विभिन्न मीडिया निष्कर्षों के मुताबिक़ दक्षिण के राज्यों (South India) में बीजेपी (BJP) पार्टी को अपने नारे, ‘अबकी बार 400 पार’ को चरितार्थ करना हो या दलगत लक्ष्य 370 सीटों के करीब पहुंचना हो तो हर हाल में भाजपा को दक्षिण भारत से सीटें चाहिये। देखना होगा कि दक्षिण में भाजपा का मत प्रतिशत कितना बढ़ता है। दक्षिण भारत के पांच राज्यों, कर्नाटक, केरल, आंध्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और एक केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी में कुल मिलाकर 130 लोकसभा सीटें हैं। तमिलनाडु में 39, कर्नाटक में 28, आंध्र प्रदेश में 25, केरल में 20 और तेलंगाना में 17 के अलावा पुड्डुचेरी में एक। सवाल यह है कि ये दक्षिण के राज्य भाजपा को कितनी सीटें देंगे? प्रधानमंत्री कहते हैं कि भाजपा तमिलनाडु में सात सीटें ला रही है। उनको कर्नाटक की सभी 28 सीटें जीतने का भरोसा है तो केरल में भी वे भाजपा के दहाई पार करने के प्रति आश्वस्त हैं। तेलंगाना में भाजपा के पास 17 में से 4 सीटें है।

हर राज्य में खाता खोलने का दावा

गृहमंत्री अमित शाह कह रहे हैं कि इस बार हम डबल डिजिट में पहुंचेंगे। भाजपा का मानना है कि ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां पार्टी अपना खाता नहीं खोलेगी। हम सभी राज्यों में बेहतर करेंगे। भले ही विपक्षी दल भाजपा के पूर्व प्रदर्शन और इतिहास दिखाकर उसकी इन घोषणाओं को खुशफहमी मानें क्योंकि दक्षिण के पांच राज्यों की 129 सीटों में से भाजपा ने 2009 में 19 और 2014 में 21 जबकि 2019 में कुल 29 सीटें ही हासिल कीं। आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु से भाजपा सांसदहीन है। कर्नाटक को छोड़ दें तो बाकी बचे कुल 101 सीटों में से उसे 2019 और 2014 में में महज 4 सीटें मिली थीं। कर्नाटक से आठ-दस सीटें कम हो जायें तो भाजपा के तमिलनाडु और केरल में खाता खुलने से भी क्या होने वाला है।

केरल में शून्य से दहाई, कर्नाटक में शतप्रतिशत सीटों का दावा कुछ अतिरेकी लग सकता है लेकिन भाजपा के आत्मविश्वास के पीछे कुछ ठोस कारण हैं। प्रधानमंत्री 7 बार तमिलनाडु जा चुके। द्रविड राजनीति के दबदबे को खत्म करने और हिंदूवादी राजनीति को उभारने के प्रयास में भाजपा  यह बात समझाने में कुछ हद तक सफल रही है कि तमिल स्वाभिमान और संकृति की वही सच्ची संरक्षक है। आबादी के 14 फीसद वन्नियारों के समर्थन वाली पीएमके से गठबंधन का भी उसे लाभ मिल रहा है। दोनों विपक्षी द्रमुक और कांग्रेस को भाजपा ने कच्चातिवू दांव से बुरी तरह घेर दिया। राजनीतिक पर्यवेक्षक तो कच्चातिवु के इस पत्ते को भाजपा का दक्षिण में प्रवेश पत्र मान रहे हैं। इस विवाद से प्रभावित तटवर्ती इलाके में रहने वाले लाखों मछुआरों का जिनका 15 सीटों पर गहरा असर है, भाजपा से जुड़ाव बढा है।

केरल में CPM से सीधी लड़ाई

बीजेपी का दावा है कि केरल में कांग्रेस के कमजोर होने से अब उसकी सीपीएम से सीधी लड़ाई है। पिछली बार भले ही वह शून्य पर थी लेकिन इस बार उसका आंकड़ा दहाई पार करेगा। सच तो यह है कि हिंदू राष्ट्रवाद को केरल में बहुत कम समर्थन मिला और बहुत हद तक विकसित केरल पर विकास के नारे का भी असर नहीं पड़ा। यहां किसी चीज ने असर डाला है तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जमीनी काम काज ने जिसके तहत संगठन ने समाज के बड़े वर्ग में पैठ बनाई है और उनके साथ सामाजिक समरसता बनाई। पिछले चुनावों में बीजेपी तीन सीटों पर कम अंतर से हारी थे और दूसरे दो में उसका प्रदर्शन उल्लेखनीय था। इसी आधार पर कुछ भाजपा नेताओं का दावा है कि वे त्रिशुर, तिरुअनंतपुरम जैसी पाँच सीटें जीतेंगे। यह संभव भले न हो पर उसका केरल में पहली बार खाता खुल सकता है।  

जहां तक आंध्र का सवाल है। चंद्राबाबू नायडू के साथ के बावजूद बीजेपी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। नायडू घोटाले में गिरफ्तारी के डर से भाजपा के साथ आये हैं और भाजपा उनका सियासी सहारा लेने के लिये। लगता नहीं कि भाजपा को यह राज्य बहुत सहायता कर पायेगा। एक सर्वे में तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 8 और कांग्रेस को 6 सीटें दे रहा है, तो दूसरा 5, एक दावा यह भी कि बीजेपी को 2 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी। करीमनगर, सिकंदराबाद निजामाबाद में भाजपा मजबूत है और उसका मतप्रतिशत भी बढेगा। प्रशांत किशोर जैसे विश्लेषक भी तेलंगाना में भाजपा को पहले या दूसरे नंबर रख रहे हैं। कर्नाटक में भाजपा ने जेडीएस के साथ गठबंधन में अपनी स्थिति सुधारी है। यहां से भाजपा 2019 में 25 सीटे पा चुकी है। मतलब साफ है कि कर्नाटक में बीजेपी को घाटा नहीं होने जा रहा है और तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी और केरल में भी वह कुल मिलाकर 15 से बीस सीटें जीतती लग रही है।