देश में जीएसटी कलेक्शन मई में 1,57,090 करोड़ रुपये था, जो जून 2023 में बढ़कर 1,61,497 करोड़ रुपये हो गया. यह लगातार 7वां ऐसा महीना है जब जीएसटी कलेक्शन 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हुआ है, जिसमें अप्रैल में तो कलेक्शन रिकॉर्ड 1.87 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले दिनों में भी ऐसे ही उत्साहभरा जीएसटी कलेक्शन जारी रहेगा.
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की उन कुछ गिनी-चुनी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जहां मांग और खपत दोनों लगातार बनी हुई है. सेवा और विनिर्माण के क्षेत्र में भी तेजी का माहौल है. भारत सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में 6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश की कुछ महत्वाकांक्षी योजनाएं बना रखी हैं, जो आने वाले वित्तीय वर्ष में भी केंद्रीय निवेश को प्रमुख बनाए रखेगी. जीएसटी कलेक्शन के बेहतर होने में एक बड़ा कारण यह भी है कि अब लगातार ई-इनवायसिंग में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे खुलापन और पारदर्शिता बढ़ रही है. नई पीढ़ी ने ऑनलाइन खरीदारी को एक तूफान में बदल दिया है. लेकिन इस बढ़ते जीएसटी कलेक्शन ने केंद्र और राज्यों के बीच टकराव को लगातार बढ़ाया है. हर राज्य ने अपने खर्च जरूरत से ज्यादा बढ़ा लिए हैं. इसलिए वह चाहता है कि केंद्र से उसे ज्यादा से ज्यादा टैक्स कलेक्शन में हिस्सेदारी मिले. अगर पिछले एक साल के आंकड़ों को देखें तो सेंट्रल जीएसटी और राज्यों की जीएसटी में कोई बहुत बड़ा गैप नहीं है. उदाहरण के लिए जून माह के कलेक्शन को ही देख लें, तो जहां केंद्र जीएसटी कलेक्शन 36,224 करोड़ रुपये था, वहीं राज्यों का जीएसटी कलेक्शन 30,269 करोड़ रुपये था. नियमित निपटान के बाद जून में केंद्र और राज्यों का कुल राजस्व केंद्रीय जीएसटी के लिए 67,237 करोड़ रुपये था और राज्यों के लिए 68,561 करोड़ रुपये था.
हितग्राही कौन?
सबसे बड़ी बात यह है कि इस जीएसटी कलेक्शन का आखिर अंतिम रूप से लाभग्राही कौन है? इसका सबसे ज्यादा फायदा किसे मिलता है? सरकारें यही कहती हैं कि जीएसटी के तहत देश के उपभोक्ताओं को कम कीमत पर चीजें उपलब्ध होती हैं. उन्हें जहां पहले कई तरह के टैक्स देने पड़ते थे, वो अब नहीं देने पड़ते. लेकिन यह सच्चाई नहीं है. अगर वाकई जीएसटी का फायदा आम उपभोक्ताओं को होता तो पिछले एक साल के भीतर यह जो छिपी हुई महंगाई है, वह देश के आम लोगों का इतना बुरा हाल न करती. भले भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास कहें कि भारत में 5 प्रतिशत से नीचे मुद्रास्फीति की दर को रखकर महंगाई पर लगाम लगाने का चमत्कारिक काम किया गया है, लेकिन व्यवहार में सच्चाई यह है कि आम उपभोक्ता मुद्रास्फीति के आंकड़े और उपभोक्ता सूचकांक का प्रतिशत नहीं देखता. वह तो सीधे तौर पर देखता है कि जो तुअर की दाल अभी 3 महीने पहले तक 105 रुपये से लेकर 115 रुपये किलो तक बिकती थी, आखिर ऐसा क्या हुआ कि वही दाल अब महानगरों में 170 से 180 रुपये के बीच मिल रही है? दूकानदार खुद कहते हैं कि जल्द ही तुअर की दाल 200 रुपये प्रतिकिलो होने वाली है.
म्यांमार व आस्ट्रेलिया जो भारत में तुअर दाल के बड़े सप्लायर हैं, उनके यहां पैदावार में न कमी आई है और न ही भारत सरकार के पास आयात का खर्चा उठाने की दिक्कत है. सरकार अगर वास्तव में उपभोक्ताओं को इस जीएसटी से कोई फायदा देना चाहती है तो उन चीजों की आपूर्ति क्यों नहीं बढ़ाती, जो अचानक कुछ महीनों में बहुत महंगी हो गई हैं? करीब 64 फीसदी जीएसटी का कलेक्शन असंगठित क्षेत्र में कामकाज करने वाले लोगों के जरिये आता है. इस बढ़े हुए जीएसटी कलेक्शन से जहां केंद्र और अंततः राज्य सरकारों को मलाई मिली है, वहीं आम उपभोक्ता को महंगाई मिली है.
– नरेंद्र शर्मा