Increasing activism in the Indian Ocean, China's sinister intentions

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चीन ने अंदमान-निकोबार से सिर्फ 1200 किलोमीटर दूर कंबोडिया में नौसैनिक अड्डा बना लिया है. इसके पहले वह श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्ष की लीज पर ले चुका है. पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को भी वह अपनी नौसेना के लिए विकसित कर रहा है. भारत को समुद्र के रास्ते सभी तरफ से घेरने की उसकी चाल है. सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दिल्ली आ सकते हैं. ऐसे मौके पर चीन से द्विपक्षीय संबंधों में आए गतिरोध को दूर करने पर चर्चा हो सकती है. 2020 में गलवान घाटी में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई थी, तभी से संबंधों में तनाव चला आ रहा है. पूर्वी लद्दाख में चीन की घुसपैठ, अरुणाचल प्रदेश पर उसका बेतुका दावा और भारत के पड़ोसी देशों को कर्ज देने के बहाने अपना प्रभावक्षेत्र बढ़ाना चिंताजनक है. गत सप्ताह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तथा वरिष्ठ चीनी कूटनीतिज्ञ वांग यी की ब्रिक्स फोरम की बैठक के दौरान जोहान्सबर्ग में भेंट हुई थी. इसके पूर्व इंडोनेशिया के बाली में प्रधानमंत्री मोदी और जिनपिंग की जी-20 सम्मेलन में कुछ मिनटों के लिए चर्चा हुई थी.

सीमा विवाद पर चर्चा नहीं करना चाहता

चीन के वार्ताकारों ने भारतीय समकक्षों से कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को हर बार शी जिनपिंग के सामने सीमा विवाद का मुद्दा नहीं उठाना चाहिए. जिनपिंग के पास और भी बड़े मसले हैं तथा भारत के साथ सीमा विवाद सुलझाने में उनकी दिलचस्पी नहीं है. चीन का प्रस्ताव है कि सीमा विवाद को परे रखकर बाकी क्षेत्रों में रिश्ते सामान्य किए जाएं. चीन इतना धोखेबाज है कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में जिनपिंग की अपने गृहराज्य गुजरात में खातिरदारी की थी, ठीक उसी समय चीनी सेना ने लद्दाख के देमचोक और चूमर इलाके में अतिक्रमण किया था. पिछले माह चीन ने दौलतबेग ओल्डी में पॉइंट 10 से 13 तक भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग पर रोक लगा दी.

मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक चीन एलएसी पर शांति और स्थिरता कायम नहीं करता, अपने साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते. भारत यही चाहता है कि चीनी सेना मई 2020 के पूर्व की पोजीशन पर वापस चली जाए. अपने तीसरे कार्यकाल के लिए चुने गए चीनी तानाशाह शी जिनपिंग केवल भारत ही नहीं, जापान, फिलीपीन्स और तायवान के लिए भी खतरा बने हुए हैं. वे अपनी विस्तारवादी नीति से बाज नहीं आ रहे. भारत के साथ ब्रिटिश शासन के समय निर्धारित सीमा रेखा मैकमोहन लाइन को मानने के लिए चीन कभी भी तैयार नहीं हुआ. हमारे राज्य अरुणाचल प्रदेश को वह दक्षिण तिब्बत कहकर अपना भूभाग बताता है. पीएम मोदी, केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह व अमित शाह के अरुणाचल दौरे पर चीन ने एतराज जताया था. 

स्टैपल वीजा का विवाद

गत सप्ताह चीन के चेंगडू में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भाग लेने जानेवाले अरुणाचल के खिलाड़ियों को चीन स्टेपल्ड वीजा दे रहा था, जो इस तरह का प्रतीक था कि अरुणाचल उसी का भूभाग है. आखिर में इस मुद्दे की वजह से भारतीय खिलाड़ी चीन नहीं गए. चीन का आक्रामक रवैया जारी रहते उसके साथ विश्वास बहाली और संबंधों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता. चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों में भारत का व्यापार घाटा 100 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचा है. चीन अपना स्टील, अल्युमीनियम, रासायनिक खाद, प्लास्टिक का सामान, खिलौने भारत में डम्प कर रहा है. इलेक्ट्रिक वाहनों में लगनेवाली सेमी कंडक्टर चिप भी चीन में बनती है. चीन ने भारत के तमाम पड़ोसी देशों को कर्ज के जाल में फंसा रखा है. इस तरह वह भारत की घेराबंदी कर रहा है जो बेहद खतरनाक है.