Indo-Pacific report released, America's open support to India

आखिर ट्रम्प शासन के समय अमेरिका ने भारत से आत्मीयता बढ़ाई.

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    हाल के वर्षों में खास तौर पर मोदी सरकार आने के बाद से भारत-अमेरिकी संबंधों में काफी निकटता आई है. इसकी 2 वजहें हो सकती हैं. एक तो यह कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने वस्तुस्थिति को खुलकर स्वीकार करते हुए कहा था कि हमने पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने के लिए अरबों डॉलर दिए थे लेकिन उसने हमें बेवकूफ बनाया. अमेरिका का पाकिस्तान से भरोसा तब टूटा जब अलकायदा चीफ ओसामा-बिन-लादेन को पाक ने अपने यहां एबोटाबाद सैनिक छावनी के निकट बंगले में पनाह दे रखी थी और अमेरिकी सील कमांडोज ने उसे वहां जाकर मार गिराया था. यही पाकिस्तान पहले अमेरिका की आंखों का तारा था. अमेरिका पाकिस्तान को रूस के खिलाफ अपनी सैनिक चौकी समझता था और उसे भरपूर आर्थिक व फौजी सहायता दिया करता था. जब-जब पाक को अमेरिका से सैन्य सामग्री मिली, उसने भारत पर हमला किया. पाकिस्तान अमेरिका से मिले पैटन टैंकों और सैबर जेट के बल पर इठलाता था. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तो पाक को आतंकवाद से लड़ाई में अपना सच्चा साथी बताया था. आखिर ट्रम्प शासन के समय अमेरिका ने भारत से आत्मीयता बढ़ाई. मोदी की अमेरिका यात्रा पर ‘हाऊडी मोदी’ और ट्रम्प के भारत आने पर ‘नमस्ते ट्रम्प’ जैसे आयोजन हुए. दूसरा पहलू यह भी है कि चीनी ड्रैगन की विस्तारवादी और धमकाने वाली नीतियों को देखते हुए अमेरिका ने क्वाड जैसा संगठन बनाया और भारत से दोस्ताना संबंध बढ़ाए.

    संबंधों में निकटता

    जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी प्रशासन को भली भांति एहसास हो गया कि पाकिस्तान चीन की गोद में जा बैठा है और दक्षिण एशिया व प्रशांत क्षेत्र में भारत से प्रगाढ़ मित्रता में ही अमेरिका का हित है. अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक (हिंद-प्रशांत) रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि भारत भू-राजनीतिक चुनौतियों व खासतौर पर एलएसी पर चीन की आक्रामकता का सामना कर रहा है. इस रिपोर्ट में प्रेसीडेंट जो बाइडन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की स्थिति को मजबूत करने, क्षेत्र को सशक्त बनाने और इस संपूर्ण प्रक्रिया में भारत के उदय व क्षेत्रीय नेतृत्व का समर्थन करने के दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया है.

    रूस से भारत के रिश्तों पर ऐतराज नहीं

    शीतयुद्ध के दिनों में अमेरिका की नीति थी कि जो रूस के साथ है, वह उसका दुश्मन! तब दुनिया रूस और अमेरिका समर्थक, ऐसे दो हिस्सों में बंटी हुई थी. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति भी अमेरिका को सख्त नापसंद थी. उसे लगता था कि भारत बाड़ पर बैठा है. इसी वजह से तब अमेरिका पाकिस्तान को पालता-पोसता था. ट्रुमन, आइजनहावर से लेकर निक्सन तक अमेरिका का भारत के प्रति ठंडा रुख बना रहा. भारत ने भी इंदिरा गांधी के समय रूस से 20 वर्षों की मैत्री संधि की थी. अमेरिका हमेशा भारत से खिंचा-खिंचा रहता था. बांग्लादेश युद्ध के समय निक्सन ने बंगाल की खाड़ी में सातवां बेड़ा भेजने की धमकी भी दी थी. आज स्थिति बिल्कुल भिन्न है. भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा है जो दुश्मन के किसी भी विमान या मिसाइल को हवा में ही नष्ट कर सकता है. यह एक बहुत ही शक्तिशाली रक्षा कवच है. कुछ क्षेत्रों में ऐसी आशंका थी कि एस-400 सौदे के बाद अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगा देगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इस डील के बावजूद राष्ट्रपति बाइडन ने भारत का खुलकर समर्थन किया है जो भारत और अमेरिका के मजबूत संबंधों को दिखाता है.

    चीन को क्वाड की चुनौती

    भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान क्वाड संगठन में सहभागी हैं, जो चीन की आक्रामकता के खिलाफ एकजुट हैं. अमेरिका ने कहा कि हम चीन को बदलना नहीं चाहते बल्कि रणनीतिक वातावरण को अमेरिका व उसके साझेदारों के अनुकूल करना चाहते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता सबसे गंभीर मुद्दा है. यद्यपि अमेरिका का रवैया भारत के लिए अनुकूल है लेकिन फिर भी भारत को दूसरों के भरोसे न रहते हुए अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लिए सामर्थ्यवान बनना होगा. क्वाड की उपयोगिता नौसैनिक मोर्चे पर हो सकती है लेकिन लद्दाख में चीन का आक्रामक रवैया भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है.