हसीना का फिर PM बनना भारत के हित में

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बांग्लादेश के चुनाव को आलोचक भले ही एकपक्षीय करार दें लेकिन हिंसा और मुख्य विपक्षी दल बीएनपी के बहिष्कार से प्रभावित इस चुनाव में प्रधानमंत्री व अवामी लीग की प्रमुख शेख हसीना ने लगातार चौथी बार जीत हासिल की. वैसे वह 5वीं बार सत्ता में आई है. 300 सदस्यीय संसद में हसीना की पार्टी बीएनपी ने 200 सीटें जीती हैं. 1986 के बाद से हसीना गोपालगंज सीट से आठवीं बार निर्वाचित हुई हैं. इस चुनाव में कम मतदान हुआ क्योंकि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री व बीएनपी की घर में नजरबंद बीमार नेता खालिदा जिया ने जनता से मतदान का बायकाट करने को कहा था. जिन 27 पार्टियों ने चुनाव लड़ा उनमें विपक्ष की जातीय पार्टी शामिल थी. अन्य पार्टियां अवामी लीग के नेतृत्ववाले गठबंधन की सदस्य थीं जिन्हें विशेषज्ञों ने ‘सैटेलाइट’ दलों का नाम दिया है.

निर्वाचित होने के बाद प्रधानमंत्री हसीना ने कहा कि बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टियों का लोकतंत्र में विश्वास नहीं है. उन्होंने भारत को बांग्लादेश का विश्वसनीय मित्र बताया और कहा कि मुक्ति संग्राम में भारत ने हमारा साथ दिया था. 1975 में जब मैंने सैनिक बगावत में अपने माता-पिता, भाइयों को खो दिया तब भारत ने ही मुझे और मेरी छोटी बहन रेहाना को शरण दी थी. मेरे लिए यह महत्व नहीं रखता कि लोग इस चुनाव को स्वीकार करते हैं या नहीं. बीएनपी जैसी आतंकवादी पार्टी ने क्या कहा, इसकी मुझे कोई फिक्र नहीं है. विदेशी मीडिया की भी मैं परवाह नहीं करती.

कम हुआ मतदान

मतपत्रों से हुए इस चुनाव में हिंसा की छुटपुट घटनाएं हुईं. 300 में से 299 सीटों के चुनाव में शांतिपूर्ण चुनाव हुआ. केवल चटगांव में दो पक्षों की बीच हिंसा हुई और गोली लगने से 2 लोग मारे गए. वहां चुनाव आयोग ने सत्तारूढ़ अवामी लीग के प्रत्याशी की उम्मीदवारी रद्द कर दी थी क्योंकि उसने एक पुलिस अधिकारी को धमकी दी थी. विपक्ष की गैर मौजूदगी में चुनावी माहौल नहीं था. मतदान केंद्रों पर सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थक और पोलिंग एजेंट के अलावा बहुत कम वोटर थे. लगभग 40 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया. मुख्य चुनाव आयुक्त हबीबुल अवल ने कहा कि 2018 के आम चुनाव में 80 फीसदी मतदान हुआ था. शेख हसीना को 2,49,965 वोट मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी और बांग्लादेश सुप्रीम पार्टी के निजामुद्दीन लश्कर को केवल 469 वोट मिले.

बहिष्कार से राह आसान हुईं

मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के चुनाव बहिष्कार ने अवामी लीग की राह आसान कर दी. बीएनपी की मांग थी कि निष्पक्ष कार्यवाहक सरकार बनाकर उसकी देखरेख में चुनाव कराए जाएं. शेख हसीना ने यह मांग ठुकरा दी थी. बांग्लादेश में एक भी चुनाव वैध नहीं हुआ. वहां हर बार विपक्ष ने सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया. 76 वर्षीय शेख हसीना का भारत के प्रति हमेशा अनुकूल रुख रहा है. वह मानती हैं कि बांग्लादेश के निर्माण व उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीउर्रहमान को सत्ता सौंपने में भारत की बड़ी भूमिका रही. पिछली यूपीए सरकार से लेकर प्रधानमंत्री मोदी की बीजेपी सरकार से हसीना के अच्छे संबंध रहे हैं. बांग्लादेश से निकट संबंध रखना भारत के लिए भी जरूरी है ताकि वह चीन के प्रभाव में न आ जाए.