केंद्रीय एजेंसियों को नियंत्रित करने की मांग पवार के सवालों पर मोदी का मौन

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    महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी के नेताओं के खिलाफ ईडी की कार्रवाई से चिंतित एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने प्रधानमंत्री मोदी से मांग की कि वे केंद्रीय एजेंसियों को कंट्रोल करें. 20 मिनट की इस मुलाकात में पीएम ने पवार की बातें सुन लीं लेकिन कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने ठंडा रुख अपनाया. इससे तो यही संकेत मिलता है कि मोदी महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता की उपेक्षा कर रहे हैं. वैसे पवार के सवालों पर प्रधानमंत्री कहते भी क्या? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके थे कि एजेंसियां अपनी जांच स्वतंत्र रूप से कर रही हैं, इसलिए हस्तक्षेप का सवाल ही नहीं उठता. महाराष्ट्र की आघाड़ी सरकार के नेता इसे बीजेपी की प्रतिशोध की राजनीति के रूप में देख रहे हैं जिसके तहत ईडी एनसीपी व शिवसेना नेताओं पर लगातार कार्रवाई कर रही है.

    यह आम धारणा है कि केंद्र सरकार के इशारे पर ही जांच एजेंसियां किसी नेता के खिलाफ सक्रिय होती हैं. चूंकि सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की सहमति जरूरी होती है, इसलिए सीबीआई महाराष्ट्र में कार्रवाई नहीं कर पा रही है लेकिन ईडी, एनसीबी और आयकर विभाग सक्रियता दिखा रहे हैं. पवार ने पीएम से चर्चा में शिवसेना सांसद संजय राऊत की संपत्तियों को कुर्क करने का मामला भी उठाया और यह भी कहा कि अगर कोई केंद्रीय एजेंसी इस तरह का कदम उठाती है तो पीएम को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी. राऊत केंद्र सरकार के खिलाफ लिखते-बोलते हैं. पवार के मुताबिक, मोदी ने कोई जवाब नहीं दिया. मैंने उम्मीद भी नहीं की थी कि वह कोई जवाब देंगे, बस मैंने अपनी बात रख दी.

    राऊत का पक्ष लिया

    शरद पवार ने सवाल किया कि संजय राऊत के खिलाफ आखिर क्या आरोप है? यह क्या हो रहा है? वह सांसद हैं और पत्रकार भी हैं लेकिन केंद्रीय एजेंसियों ने यह कार्रवाई की तो निश्चित रूप से इसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है. राजनीति में धमकी का दौर शुरू हो गया है, इस बात से उन्होंने पीएम को अवगत करा दिया है.

    उत्पीड़न का आरोप

    शिवसेना सांसद संजय राऊत ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर उन्हें केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से उत्पीड़ित करने का आरोप लगाया और कहा कि बीजेपी के कुछ नेता उनके पास आए थे. वे चाहते थे कि महाराष्ट्र की सरकार गिराने में शिवसेना उनकी मदद करे. पीएम से मुलाकात में पवार ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की भी शिकायत की. उन्होंने कहा कि 2 वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने पर भी राज्यपाल ने महाराष्ट्र विधानपरिषद के 12 विधायकों की नियुक्ति पर अब तक फैसला नहीं लिया. पवार ने विश्वास जताया कि पीएम मोदी इस मांग को गंभीरता से लेते हुए जरूर कोई निर्णय लेंगे.

    यदि दामन साफ है तो जांच से डर कैसा

    करोड़ों रुपयों की संपत्ति रखने वाले राजनेता यदि मानते हैं कि इसे उन्होंने ईमानदारी और मेहनत से अर्जित किया है तो फिर केंद्रीय एजेंसियों की जांच से उन्हें डर क्यों लगना चाहिए? यदि उनका दामन साफ है तो जांच को लेकर आपत्ति क्यों उठा रहे हैं? राजनीतिक प्रतिशोध एक मुद्दा हो सकता है क्योंकि कार्रवाई सिर्फ एनसीपी व शिवसेना नेताओं पर हो रही है, बीजेपी के किसी नेता पर कोई आंच नहीं आ रही है. क्या यह सच नहीं है कि बीजेपी महाराष्ट्र की आघाड़ी सरकार को गिरते देखना चाहती है और पुन: यहां की सत्ता पाने की आकांक्षा रखती है, इसलिए साम-दाम-दंड-भेद के सभी तरीके आजमाए जा रहे हैं!