भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर से लगी ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने के कुछ सप्ताह बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटे शाही ईदगाह परिसर के एएसआई सर्वे को मंजूरी दे दी। हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण के लिए अदालत की निगरानी में एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की मांग को स्वीकार कर लिया। एएसआई का सर्वे कब होगा व उसमें कितने लोग शामिल होंगे, यह 18 दिसंबर को तय होगा। हिंदू याचिकाकर्ताओं का पुरजोर दावा है कि भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर मस्जिद बनाई गई। वहां पहले मंदिर था जिसे औरंगजेब के आदेश पर तोड़कर मस्जिद निर्मित की गई।
माना जा रहा है कि कोर्ट वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के समान मथुरा में भी वीडियोग्राफी सर्वे करा सकता है। यह मामला कुल 13। 37 एकड़ जमीन का है। इसमें से 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर है जबकि 2। 37 एकड़ में मस्जिद बनी है। इस विवाद में 18 याचिकाएं मथुरा कोर्ट में थीं। इन्हीं में से एक याचिका श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशवदेव की ओर से हरिशंकर जैन, विष्णु जैन व रंजना अग्निहोत्री ने दायर की और सर्वे की मांग की। बाद में हाईकोर्ट ने अन्य 17 याचिकाएं इसमें जोड़ दीं। इसी से जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट में है जिस पर 9 जनवरी को सुनवाई होगी।
हिंदू पक्ष के तर्क
13। 37 एकड़ की पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर है। यहां पर कटरा केशव देव मंदिर को औरंगजेब के आदेश पर 1669-70 में तोड़कर मस्जिद बनाई गई जिसका जिक्र 16वीं सदी में लिखी गई ‘अखबारात’ में भी है। मस्जिद की दीवारों पर कमल और शेषनाग के चिन्ह बने हैं जो हिंदू आस्था को दर्शाते हैं। यह मस्जिद अवैध है जिसे हटाने के आदेश दिए जाएं।
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
मुस्लिम पक्ष ने 1991 के पूजा स्थल कानून का हवाला दिया जो किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को 15 अगस्त 1947 की तरह बनाए रखता है। 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और ईदगाह के बीच समझौता हुआ था जिसमें 2। 37 एकड़ जमीन मस्जिद को दे दी गई। बाद में सेवा संघ भंग हो गया। हिंदू पक्ष इस समझौते को अवैध बताता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मयंक कुमार जैन ने शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे की 8 लोगों की याचिका को अनुमति दी जिनमें भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की अगली मित्र (नेक्स्ट फ्रेंड) के तौर पर रंजना अग्निहोत्री शामिल हैं। यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड के वकील पुनीत गुप्ता ने कहा कि हमने हिंदू पक्ष के आवेदन को रद्द करने की मांग की है। हम चाहते थे कि हमारे आवेदन पर पहले सुनवाई हो लेकिन हिंदू पक्ष ने कहा कि उसके आवेदन की आदेश 26 नियम 9 सीबीसी के तहत पहले सुनवाई होनी चाहिए। हाईकोर्ट के इस आर्डर को मुस्लिम पक्ष द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
किसी पक्ष का नुकसान नहीं
हाईकोर्ट जज मयंक कुमार जैन ने कहा कि कमिश्नर के रूप में 3 वकीलों की नियुक्ति से किसी भी पक्ष का कोई नुकसान नहीं होगा। कमिश्नर की रिपोर्ट केस की गुणवत्ता पर असर नहीं डालेगी। ढांचे को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी। कमीशन नियुक्त करने की याचिका इस आधार पर नहीं ठुकराई जा सकती कि यह लगभग 3 वर्ष विलंब से दायर की गई। कमीशन के गठन को लेकर दोनों पक्षों के वकीलों की राय सुनी जाएगी। यदि कमीशन की रिपोर्ट पर किसी को शिकायत होगी तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सकेगा।