प्रकृति के क्रूर तेवर के सामने इंसान बेबस होकर रह जाता है. नैसर्गिक आपदा के रूप में काल झपट्टा मारकर कब जिंदगी छीन ले, इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता. रायगड जिले की खालापुर तहसील के दुर्गम इरशालवाडी गांव के लोगों को क्या पता था कि रात में उन पर पहाड़ टूट पड़ेगा और वो सुबह का सूरज नहीं देख पाएंगे. इस भीषण हादसे में 17 लोगों की मौत हो गई तथा 100 से ज्यादा लोगों का अता-पता नहीं है जहां बस्ती थी, वहां पत्थर और मलवे का ढेर लगा हुआ है. 90 फीसदी घर ध्वस्त हो गए पहाड़ टूटने से तबाह होनेवाला इरशालवाडी महाराष्ट्र का चौथा गांव है. 22 जुलाई 2021 में भी रायगड़ जिले की महाड़ तहसील के तलीये गांव में ऐसा हादसा हुआ था. पुणे जिले के मालिन गांव में 30 जुलाई 2014 को पहाड़ टूटने से अनेक लोगों की मौत हुई थी.
दुर्घटना का कारण
भूवैज्ञानिकों की राय है कि बड़ी तादाद में वृक्षों को तोड़ने और खेती के लिए जमीन सपाट करने से पहाड़ कमजोर हो जाते है और भारी वर्षा के दौरान उनके ढहने का खतरा बना रहता है. वन विभाग के सहसचिव रहे श्रीनिवास राव के अनुसार महाराष्ट्र का 15 प्रतिशत भूभाग पहाड़ी है. इसमें रायगड, ठाणे, नाशिक, मुंबई, पुणे, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, कोल्हापुर और उनके घाट परिसर का उल्लेख है जहां पहाड़ गिरने की आशंका बनी रहती है. पहाड़ की तलहरी में बसे ऐसे गांव का अन्यत्र पुनर्वसन करने की रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी. इरशालवाडी गांव ऐसी दुर्गम जगह पर है जहां कोई वाहन नहीं जा सकता. पक्का रास्ता नहीं है इस चढ़ाई पर पहुंचना बेहद मुश्किल है. वहां के निवासी पिछले 7-8 वर्षों से अपने पुनर्वसन की मांग कर रहे थे. ग्रामपंचायत ने भी प्रस्ताव भेजा था लेकिन सरकार ने इस दौरान क्या किया? कोई वैकल्पिक स्थान तय किया क्या? यह सारी जानकारी दी जानी चाहिए. केवल बचाव कार्य कर आगे के लिए आश्वासन देने से काम नहीं चलता. आम तौर पर नौकरशाही यह कारण बताती हैं कि लोग गांव छोड़ने को तैयार नहीं थे. बगैर विकल्प के लोग जाएंगे भी कहां?
राज्य में 11 संवेदनशील जिले
माधव गाडगिल समिति ने संकेत दिया था कि महाराष्ट्र के 11 जिले संवेदनशील है जहां पहाड़ ढहने की आशंका बनी रहती है. भोर व मुलशी तहसीलों के 3 गांवों के पुनर्वसन का प्रस्ताव मुख्यमंत्री कार्यालय में लंबित है. इस संबंध में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बताया कि गाडगिल रिपोर्ट के अनुसार संवेदनशील गांवों की मैपिंग की गई है. हर गांव का कोर व बफर जोन तैयार कर लिया गया है तथा इसकी जानकारी केंद्र को भेजी गई है. पर्यावरण वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने कहा कि इरशालवाडी की घटना कुदरती आपदा नहीं बल्कि सह्याद्रि पर्वत पर हो रहे मानवी आघात का दुष्परिणाम है. पहाड़ियों को गलत तरीके से खोदा जा रहा है ऐसी घटनाएं सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, केरल में भी हो रही हैं.
अलर्ट किया गया था
रायगड़ की पूर्व पालकमंत्री व राज्य की महिला व बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने कहा कि प्रशासन ने 2-3 दिन पहले गांव के लोगों को अलर्ट कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को कहा था. यदि वे समय रहते चले जाते तो कई जिंदगियां बच सकती थीं. भूपर्यावरण विशेषज्ञ डा. सतीश ठिगले के अनुसार दुर्घटना टालने के लिए वनीकरण करना, सुरक्षा दीवार बनाना, चट्टानों को जाली से कसना. दुर्घटना की आशंका होने पर तत्काल घर छोड़कर सुरक्षित स्थान की ओर चले जाना जरुरी है. पर्वतीय क्षेत्र में भारी वर्षा होने से ऐसी दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है. पश्चिमी घाट को बचाने की आवश्यकता है. राज्य में अब तक पहाड़ परिसर के कोडीवले, रोहन, दासगांव, जुई पुणे तहसील के मल्लिन, तलीये, पोसरे, ढोकावले, आंबेघर, मिरागांव में पहाड़ ढहने की घटनाओं में लगभग 517 लोगों की मौत हुई है.