भारत के दखल देने का सवाल ही नहीं, भ्रष्ट नेतृत्व की त्रासदी भुगत रहा श्रीलंका

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    श्रीलंका की आजकतापूर्ण स्थितियों के बीच वहां के प्रदर्शनकारियों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मामले में दखल देने की मांग की है. भारत ने श्रीलंकाई जनता के लिए पहले भी सहायता भेजी है और आगे भी भेज सकता है परंतु दूसरे देश के गृहयुद्ध में हरगिज हस्तक्षेप नहीं करेगा. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत इस तरह की दखलंदाजी का घातक नतीजा देख चुका है, इसलिए दूसरे देश की आग में हम अपने हाथ नहीं झुलसाएंगे.   

    ब्रिटेन से 1948 में आजादी मिलने के बाद श्रीलंका को सोलोमन भंडारनायके के रूप में समर्थ नेतृत्व मिला था. सोलोमन की हत्या हो जाने के बाद उनकी पत्नी सिरिमाओ भंडारनायके ने अनेक वर्षों तक श्रीलंका की सत्ता कुशलता से संभाली. सिरिमाओ के बाद उनकी बेटी चंद्रिका कुमारतुंडे राष्ट्रपति बनी थीं. समय के साथ इस देश की राजनीतिक स्थितियों में परिवर्तन आता चला गया. एक दौर ऐसा भी आया जब श्रीलंका गृहयुद्ध के कगार पर जाकर खड़ा हो गया. 

    जाफना जैसे उत्तरी प्रांतों में रहने वाले तमिलों और वहां के मूल निवासी सिंहलियों में जंग छिड़ गई. लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (लिट्टे) ने अलग तमिल देश की मांग करते हुए गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया. लिट्टे और सेना के बीच वर्षों युद्ध चलता रहा, जिसमें जनधन की भारी हानि हुई. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी चिंता देखी गई. उस स्थिति में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेमदासा ने दिल्ली आकर भारत से हस्तक्षेप करने की मांग की. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से कहा कि यदि भारत ने शांति सेना नहीं भेजी तो वह पाकिस्तान या अमेरिका से सेना मंगवा लेंगे. 

    यह भारत के लिए इसलिए चिंता की बात थी कि यदि पाकिस्तानी या अमेरिकी फौज आकर श्रीलंका में डट गई तो यह हमारे देश के लिए भी खतरा हो सकता है. इस हालत में राजीव गांधी ने श्रीलंका में भारतीय शांति सेना भेज दी, जिससे तमिलों में नाराजगी फैल गई. भारतीय शांति सेना के जवान दोहरी चपेट में आ गए. लिट्टे और श्रीलंका की सरकारी सेना की क्रॉस फायरिंग में भारत के सैकड़ों सैनिकों की व्यर्थ ही बलि चढ़ गई. राजीव गांधी के शांति सेना भेजने के निर्णय की तीखी आलोचना हुई कि उन्होंने दूसरे मुल्क के झगड़े में क्यों दखल दिया? 

    लिट्टे ने साजिश रचाकर राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदूर में मानवबम से हत्या करवा दी. इसके पहले भी जब राजीव गांधी श्रीलंका दौरे पर गए थे तो कोलम्बो में गार्ड ऑफ ऑनर लेते समय विजीता रोहाना विजेमुनि नामक नौसैनिक ने बंदूक के बट से प्रहार कर उनकी हत्या का प्रयास किया था. राजीव गांधी ने तत्क्षण नीचे झुककर स्वयं को बचा लिया था. तब भारतीय नेतृत्व से लिट्टे और सिंहली दोनों नाराज थे. शांति सेना भेजने का कदम बिल्कुल बेतुका था जिसमें भारत को भारी नुकसान उठाना पड़ा था.

    अदूरदर्शी नीतियों का नतीजा

    विगत दशकों में श्रीलंका की जनता को खुदगर्ज, भ्रष्ट और अदूरदर्शी नेतृत्व की करनी का फल भुगतना पड़ा. राजपक्षे परिवार ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व कैबिनेट मंत्री पदों पर बेशर्मी से कब्जा कर लिया था. लोकतंत्र का ऐसा मखौल शायद ही कहीं देखा गया. करोड़ों रुपयों का भ्रष्टाचार करने के अलावा श्रीलंका के इन शासकों ने खर्च में कटौती के नाम पर रासायनिक खाद के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, इसकी वजह से अनाज की पैदावार बुरी तरह घट गई और लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए.

    चीन से भरपूर कर्ज लिया जाता रहा. चीन ने वहां की कंपनियों के अलावा श्रीलंका के संसाधनों को भी अपने कब्जे में ले लिया. श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह चीन ने 99 वर्ष की लीज पर हथिया लिया. राजपक्षे परिवार की नीति ‘घर फूंक, तमाशा देख’ वाली थी. मुल्क के हालात बद से बदतर होते चले गए.

    गोटबाया भाग निकले

    श्रीलंका को भारी मुसीबत में फंसाकर वहां के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे मालदीव भाग गए और शायद वे वहां से भी निकलकर सिंगापुर, दुबई या यूएई रवाना हो सकते हैं. माना जा रहा है कि वह सिंगापुर से राजनीतिक शरण देने का अनुरोध कर सकते हैं. भारतीय दूतावास ने इस खबरों का खंडन किया है कि भारतीय सेना ने गोटबाया को भागने में मदद दी.

    श्रीलंका की जनता का आक्रोश इसी बात से मालूम पड़ता है कि उसने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे का घर जला दिया और राष्ट्रपति गोटबाया के निवास में घुसकर तोड़फोड़ की. श्रीलंका में न खाद्यान्न है, न दवाइयां. सरकारी खजाना खाली है. विदेशी मुद्रा न होने से कुछ मंगाया भी नहीं जा सकता. डॉक्टर जनता को विचित्र सलाह दे रहे हैं कि वह बीमार होने से बचें, लोग दुर्घटना का शिकार भी न हों क्योंकि पैसे की कमी है और दवाइयां भी समाप्त हो रही हैं.