क्यों जरूरी है एमएसपी की कानूनी गारंटी

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आंदोलनकारी किसानों की प्रमुख मांग है कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दी जाए।  स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के मुताबिक एमएसपी फसल उत्पादन की समग्र लागत (सी2) तथा 50 प्रतिशत अतिरिक्त रकम के साथ होनी चाहिए।  बीजेपी ने भी इसका वादा किया था।  किसानों की मांग का अगला हिस्सा यह है कि जिन 23 फसलों का एमएसपी घोषित किया गया है, वह बाजार में वैध रूप से एमएसपी या उससे अधिक दाम पर खरीदी जानी चाहिए।  

2023-24 में 23 फसलों का कुल एमएसपी मूल्य 15 लाख करोड़ रुपए था परंतु सभी फसल बेची नहीं गई।  किसान अपनी उपज का कुछ हिस्सा अपने खाने के लिए रख लेते हैं।  कुछ भाग बीज के रूप में सुरक्षित रखते हैं या पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।  कुछ उपज कृषि श्रमिकों को दी जाती है तो कुछ फसल बगैर पैसे के आपसी लेनदेन (बार्टर) में काम आती है। 

फसल का कुछ हिस्सा चूहे खा जाते हैं तो कुछ कटाई, परिवहन और स्टोरेज के दौरान नष्ट हो जाती है।  फसल के एक-तिहाई हिस्से का यही हाल होता है।  इस तरह 15 लाख करोड़ की बजाय सिर्फ 10 लाख करोड़ रुपए की फसल बाजार में जाती है।  सरकार आमतौर पर गेहूं, धान और गन्ना खरीदती है।  सरकारी खरीदी 4 से 5 लाख करोड़ की होती है, जबकि प्राइवेट सेक्टर 5 से 6 लाख करोड़ की खरीदी करता है।

निजी क्षेत्र आमतौर पर एमएसपी से 25 प्रतिशत कम भाव पर खरीदी करता है।  यदि एमएसपी को कानूनी गारंटी मिल जाए तो प्राइवेट सेक्टर किसानों को 1। 5 लाख करोड़ रुपए अधिक देने को बाध्य होगा।  यदि किसानों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा तो वे इसे खर्च करेंगे, जिससे बाजार में मांग बढ़ेगी।  इससे रोजगार और निवेश भी बढ़ेगा तथा अंततः सरकार को ज्यादा टैक्स मिलने लगेगा।  क्या किसानों को उनका हक नहीं मिलना चाहिए?