भारत की राजनीति में धर्म, भाषा और क्षेत्रीयता हमेशा से हावी रहे हैं. अपनी तुच्छ स्वार्थसिध्दि के लिए नेता इन मुद्दों को भुनाते देखे गए हैं. लोगों के दिलो-दिमाग में नफरत का बीज बोनेवाले देश की एकता-अखंडता के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित होते हैं. महाराष्ट्र के संभाजी नगर में भारी हिंसा और आगजनी हुई जिसके लिए राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने नफरत फैलानेवाले भाषणों (हेट स्पीच) को गंभीरता से लिया है. जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षतावाली पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि वह हिंदू जन आक्रोश रैली के मामले में कुछ नहीं कर रही है, इसलिए यह सब चल रहा है. भड़काऊ भाषण इसलिए चल रहे हैं क्योंकि राज्य सरकारें नपुंसक और शक्तिहीन हैं.
अभद्र भाषा का इस्तेमाल एक दुष्चक्र है जिसे रोकना होगा. सरकार को एक प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए लेकिन वह कुछ नहीं कर रही, शांत है इसलिए सबकुछ हो रहा है. जिस वक्त राजनीति और धर्म को अलग कर दिया जाएगा, यह सब समाप्त हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने घृणा और वैमनस्य पैदा करने वाले भाषणों पर तीखी नाराजगी जताई है. पीठ ने नफरत फैलानेवाले भाषण देनेवालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने को लेकर विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हर दिन तुच्छ तत्व टीवी और सार्वजनिक मंचों पर दूसरों को बदनाम करने के लिए भाषण दे रहे हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केरल में एक व्यक्ति द्वारा खास समुदाय के खिलाफ दिए गए अपमानजनक भाषण की ओर भी कोर्ट का ध्यान दिलाया.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जोसेफ और न्या. बीवी नागरत्ना की पीठ ने उदार दृष्टिकोण रखनेवाले पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू और अटलबिहारी वाजपेयी के भाषणों का हवाला देते हुए कहा कि उनकी आवाज सुनने के लिए दूरदराज के इलाकों से लोग एकत्र होते थे. जब वकील कपिल सिब्बल ने पूछा कि हेट स्पीच कब खत्म होंगे तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप तो चांद मांग रहे हैं! यह ऐसा सिलसिला है जिसे नेताओं को ही रोकना पड़ेगा. आखिर अदालत कितने लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सकती है? भारत के लोग अन्य नागरिकों या समुदायों को अपमानित न करने का संकल्प क्यों नहीं ले सकते?