ठेले हटाने पर हाईकोर्ट की फटकार, कानून किसी को मांसाहार से नहीं रोकता

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    कोई भी निर्णय कानून की बुनियाद पर लिया जाना चाहिए, न कि अपनी मर्जी के मुताबिक! अहमदाबाद महानगर पालिका ने शहर की सड़कों पर मांसाहारी खाद्य सामग्री बेचनेवाले ठेलों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें हटाया तो इसके खिलाफ मांसाहारी लोगों ने गुजरात हाईकोर्ट में गुहार की. यद्यपि महानगर पालिका के वकील ने दलील दी कि सड़कों से अतिक्रमण हटाने के लिए नगर निगम कर्मियों ने ठेलों को उठाया है लेकिन जज ने कहा कि ऐसी शिकायतें हैं कि सिर्फ मांसाहारी खाद्य सामग्री बेचनेवालों पर ही कार्रवाई की जा रही है. ऐसा क्यों? 

    गुजरात हाईकोर्ट के जज बिरेन वैष्णव ने फटकारते हुए कहा कि मुझे क्या खाना है यह आप कैसे तय कर सकते हैं? आपको मांसाहार पसंद नहीं है तो यह आपका दृष्टिकोण हो सकता है लेकिन आप किसी व्यक्ति को उसकी पसंद का खाना खाने से कैसे रोक सकते हैं? क्या अन्य लोगों को आपकी मर्जी के अनुसार चलना होगा? कल सुबह क्या आप तय करेंगे कि मुझे बाहर जाकर क्या खाना चाहिए? कुछ लोगों के अहंकार पोषण के लिए आपने यह मुहिम छेड़ी है. इसे बंद कीजिए. कोर्ट का सीधा आशय है कि खान-पान एक निजी विषय है. किसी को शाकाहारी होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. 

    जिसको जो अच्छा लगता है, उसे खाने के लिए वह आजाद है. कानून ने ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है कि लोग मांसाहार न करें. इतने पर भी सार्वजनिक रूप से सड़क किनारे ठेलों पर मटन बिरयानी, कोरमा, अंडाकरी या अंडा भुर्जी पकते देखना और वहां से उठती मसाले की गंध शाकाहारी लोगों को अरुचिपूर्ण लगती है. कोई अपने घर या होटल में चाहे जो खाए. आखिर सरकार भी तो महात्मा गांधी के जन्म दिवस तथा महावीर जयंती जैसे पर्वो पर मांस की दूकाने बंद रखवाती है. कितने ही लोग विशुद्ध शाकाहारी होते हैं. क्या उनकी भावना का सम्मान नहीं किया जाना चाहिए?