महाराष्ट्र जैसे अग्रणी राज्य में हजारों बाल विवाह होना चिंताजनक

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    महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील और देश के अव्वल नंबर राज्य में प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में बाल विवाह होना बेहद दुखद और चिंताजनक है. खासतौर पर यह कुप्रथा पिछड़े आदिवासी समुदाय में है. राज्य के मेलघाट, पालघर व गड़चिरोली जैसे आदिवासी जिलों में पिछले 3 वर्षों में 15,000 से अधिक बाल विवाह होने पर बाम्बे हाईकोर्ट ने चिंता जताई और कहा कि महाराष्ट्र सरकार को बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासी समुदाय को संवेदनशील बनाना चाहिए.

    आदिवासियों की अपनी रीति-रिवाज और रस्में हैं, फिर भी बाल अधिकारों की रक्षा को लेकर कदम उठाना शासन का दायित्व है. अदालत ने महाराष्ट्र में बाल विवाह के मामलों की स्थिति का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का निर्देश दिया था. इस सर्वे की चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. बाल विवाह से नाबालिग माता और शिशु दोनों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है. आदिवासी समाज में कुपोषण और बाल मृत्यु की बड़ी वजह कम उम्र में लड़कियों की शादी होना है. 

    लड़कियां नाबालिग होते हुए भी बच्चे को जन्म देती हैं. वे स्वयं कमजोर व कुपोषित रहती हैं जिससे उनकी संतान भी निर्बल, कुपोषित व अल्पजीवी होती है. आदिवासी इलाकों में पुरानी रूढ़ियों के चलते 18 वर्ष से भी काफी कम उम्र में लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है. यद्यपि 1500 से ज्यादा ऐसी शादियां प्रशासन ने रोक दी थीं लेकिन फिर भी यह सिलसिला लगातार चलता आ रहा है. 

    जब चीफ जस्टिस ने पूछा कि बाल विवाह की गंभीर समस्या के समाधान को लेकर सरकार का क्या प्रस्ताव है तो महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि ऐसे मामलों में बल प्रयोग करने का कोई फायदा नहीं होगा. आदिवासियों को समझाने के लिए गैर सरकारी संगठनों व बाकी जागरूकता माध्यमों के इस्तेमाल की जरूरत है. आदिवासी समाज को भी अपनी बच्चियों की रक्षा के लिए जागृत होना चाहिए.