advantages and disadvantages of google

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, आजकल लोग अपने दिमाग से काम नहीं लेते, हर बात में गूगल गुरु के भरोसे रहते हैं। कोई संदर्भ या रिफरेंस याद रखना भी जरूरी नहीं समझते। वे जानते हैं कि गूगल है तो सब कुछ मुमकिन है। उनके ख्याल में यह बात नहीं आती कि गूगल कभी अर्थ का अनर्थ भी कर सकता है। उस पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता। ’’ 

हमने कहा, ‘‘इस तरह शंका करने की बजाय गूगल दि ग्रेट की अच्छाइयां देखिए। पहले लोगों को कोई जानकारी हासिल करने के लिए इनसाइक्लोपीडिया या बुक ऑफ नॉलेज के पन्ने पलटने पड़ते थे या लाइब्रेरी की खाक छाननी पड़ती थी। वकीलों को ढेर सारी कानून की किताबें रखनी पड़ती थीं। किसी मामले में मिसाल खोजने के लिए काफी मेहनत करना जरूरी हो जाता था। इसी तरह डाक्टर भी किसी जटिल बीमारी को समझने के लिए काफी पुस्तकें पढ़ते थे। आज गूगल की वजह से हर चीज फिंगर टिप्स पर है। चाहे जो रिफरेंस खोज लो पलक झपकते जानकारी मिल जाती है। गूगल की तुलना अलादीन के जादुई चिराग से की जा सकती है। इतिहास, भूगोल, सोशल साइंस, मेडिकल साइंस, गणित, इंजीनियरिंग, साहित्य, फिल्म, वेद, पुराण, उपनिषद, महाकाव्य, अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ा कोई सवाल पूछो, जवाब तुरंत हाजिर है। विद्यार्थी गूगल के भरोसे अपना होमवर्क चटपट निपटा लेते हैं। मरीज अपनी दवाइयों की जानकारी खुद खोज लेता है। पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा की तैयारी में भी गूगल से मदद मिलती है। गूगल ज्ञान का महासागर है। ’’ 

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मोबाइल और गूगल पर अतिनिर्भरता से लोगों ने अपने दिमाग को जंग लगा लिया है। गूगल कभी गुड़-गोबर भी करके रख देता है। उसे चेक नहीं किया तो भद्दी गलतियां हो सकती हैं। भारतीय रेलवे ने गूगल ट्रांसलेशन के भरोसे एक ट्रेन का नाम ‘मर्डर एक्सप्रेस’ रख दिया। जब यह अनुवाद सोशल मीडिया पर वायरल होने से लोग भड़के तो रेलवे को अपनी गलती का अहसास हुआ। हटिया रेलवे स्टेशन के नाम को गूगल ने हत्या स्टेशन समझ लिया। गूगल ट्रांसलेशन से वह अंग्रेजी में मर्डर बन गया। रेलवे ने हटिया का मलयालम भाषा में अनुवाद ‘कोलापथकम’ कर दिया जिसका हिंदी में अर्थ होता है हत्यारा!’’ 

हमने कहा, ‘‘अनदेखी के लिए अंग्रेजी में कहा जाता है आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ माइंड। इसका शब्दश: गूगल अनुवाद होगा ब्लाइंड ल्यूनेटिक अर्थात अंधा पागल!’’