पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, महिला आरक्षण बिल पास हो जाने की महिलाओं में क्या प्रतिक्रिया हो सकती है. क्या वे खुशी से फूली नहीं समाएंगी? क्या उनके मन में हर्ष और उत्साह के लड्डू फूट रहे होंगे? अपनी जीत के इस एहसास से क्या उन्हें विजयोन्माद हो गया होगा?’’
हमने कहा, ‘‘महिलाओं का मन अनंत गहराई वाले महासागर के समान होता है जिसकी थाह पाना काफी कटिन है. एक वैज्ञानिक ने थ्योरी दी थी कि पुरुष मार्स अर्थात मंगल ग्रह से आए हैं और महिलाएं वीनस या शुक्र ग्रह से आई हैं. उनकी ‘हां’ में ‘ना’ तो कभी ‘ना’ में ‘हाँ’ छुपी होती है. जहां तक आरक्षण का प्रश्न है, जब तक महिलाओं को पुरुषों की प्रापर्टी समझा जाता था तब कहा गया था कि कौमार्य अवस्था में पिता, विवाह के बाद पति और वृद्धावस्था में पुत्र का कर्तव्य उनकी रक्षा करना है. अब उन्हें आरक्षित सीटें मिल जाएंगी. इन सीटों पर महिला विरुद्ध महिला चुनाव लड़ेंगी और पुरुष तमाशा देखेंगे.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमने पिछड़ी बस्ती में रहनेवाली महिला से पूछा कि क्या वह चुनाव लड़ने को तैयार है? उसका जवाब था- मुझे लड़ने का बहुत अभ्यास है. शादी के बाद सास और ननदों से अकेले लड़ी. कभी-कभी पति से भी लड़ लिया करती हूं फिर वही हारकर मुझे मनाने आता है. उसने एक बार कहा भी कि शादी के समय में चंद्रमुखी थी, फिर सूर्यमुखी बनी और अब ज्वालामुखी बन गई हूं. अब भी मैं सार्वजनिक नल पर पहले पानी भरने के लिए आस-पड़ोस की महिलाओं से लड़ लेती हूं. इसलिए मेरी लड़ने की काबिलियत पर शक मत कीजिए!’’
हमने कहा, ‘‘पुरुषों ने चालाकी से महिलाओं को घरगृहस्थी, चूल्हा-चौका और बाल-बच्चों में उलझा रखा है. उन्हें चुनाव लड़ने की फुरसत कैसे मिल पाएगी?’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज फुरसत मिलती नहीं, बल्कि निकालनी पड़ती है. महिलाएं एक साथ कई काम बखूबी करनेवाली मल्टीटास्किंग होती हैं. उनसे बहस में कोई नहीं जीत सकता. उनके दिमाग में पुरुषों की तुलना में अधिक तेजी से तर्क और विचार आते हैं. वे चाहें तो अपनी जुबान कतरनी की तरह चला सकती हैं. जब महिल आरक्षण बिल लागू हो जाएगा तो संसद और विधानसभाओं में महिला सदस्य पुरुषों की बोलती बंद कर देंगी. उनकी घर-परिवार और समाज की समझ पुरुषों से बेहतर होती है. इसलिए सार्थक कानून बनाने में वे आगे रहेंगी.’’