टाइगर बन घूम रहे नेता-अभिनेता, असली को कौन पूछता है… ?

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पड़ोसी ने हमसे कहा, निशानेबाज बीते दो दिनों से मैं लगातार रात रात भर जागकर टाइगर पर रिसर्च कर रहा हूं. इसके लिए मैंने सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म के सब्सक्रिप्शन रिचार्ज करा लिये हैं और अब जल्दी ही टाइगर-एक्सपर्ट हो जाऊंगा. आखिर दुनिया में टाइगर इतने कम बचे हैं कि आने वाली पीढ़ी इनको सिर्फ सिनेमा के परदे पर ही देख सकेगी. हमने कहा कि रिसर्च का सब्जेक्ट तो अच्छा चुना है लेकिन दुनिया ही क्यों; महाराष्ट्र की हालत देख लो. यहां का तो सीन ही गजब है. हर हफ्ते एक टाइगर की मौत हो रही है और सरकार कुम्भकर्णी नींद में सो रही है.

हमने कहा, सच कहते हो भाई. वैसे भी इन टाइगरों को पूछता कौन है. महाराष्ट्र के टाइगर तो और भी लावारिस हो गये हैं. कभी एशिया का सबसे बड़ा टाइगर ‘जय’ शान से घूमता था. कहां गायब हुआ, उसकी लाश तक नहीं मिली. ताड़ोबा में माया मेमसाहब हों या छोटी माया, सबकी अपनी महिमा. इन्हें देखने के लिए क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर तक हर दूसरे महीने पहुंच जाते हैं. महाराष्ट्र के टाइगर कहे जाने वाले बाल ठाकरे के परिवार का भी यह पसंदीदा स्थान है. हालांकि सवाल यही है कि महाराष्ट्र की सरकार को डॉलर में पैसे कमा कर देने वाले इन कमाऊ पूत की नेता- अभिनेता क्यों फिक्र करें. 

पड़ोसी ने कहा कि निशानेबाज, इनसे ज्यादा कमाई तो फिल्मों में है. हमने कहा कि सही है. देश में इन दिनों हर छोटा-बड़ा नेता अपने आपको टाइगर से कम नहीं समझता. सलमान खान तो खुद को टाइगर से कम नहीं समझते. वो अब तक एक था टाइगर, टाइगर जिंदा और टाइगर-3 फिल्में भी बना चुके हैं. 

वैसे रिसर्च के लिए टाइगर का होना नहीं होना अब किसी को मायने नहीं रखता. टाइगर बेचारे पहले से ही कम थे और इसी स्पीड से मरते रहे तो महाराष्ट्र में इनकी सिर्फ मूर्तियां बनाकर जंगलों में लगा देनी पड़ेंगी. 

पड़ोसी ने हमसे कहा, निशानेबाज, आप तो सचमुच सीरियस हो गये. मैं तो असली टाइगर की बात ही नहीं कर रहा था. मेरा सब्जेक्ट तो टाइगर पर फिल्में और उनके यहां हम सुरक्षित नहीं हैं. लगता है किसी सर्कस के तंबू में हमें भी जाना पड़ेगा…!! कलाकारों पर आधारित है. फिर भी असली टाइगर की जगह नहीं ले सकते. हां नेता नहीं जागे तो असली टाइगर टाईगर बचाओजरूर उनकी ‘कमाई’ बंद करवा देंगे.