nishanebaaz-Commonwealth Games 2022-Indian athlete won the heart of the country

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेनेवाले हमारे यशस्वी खिलाड़ियों के बीच क्षेत्र, भाषा, जातीयता, रीतिरिवाज, खान-पान की आदतों को लेकर कोई मतभेद नहीं था. उन्होंने एकजुटता के साथ भारत की गरिमा बढ़ाते हुए अपने परफार्मेंस दिए. उन्होंने जीतने पर पूरा ध्यान देते हुए यही सोच रखी कि सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी!’’

    हमने कहा, ‘‘इसमें क्या शक है कि हमारे खिलाड़ियों ने पूरे हौसले के साथ संघर्ष की भावना बनाये रखी. राष्ट्रमंडल के 72 देशों के बीच कड़ा मुकाबला करते हुए इन बहादुरों ने 22 स्वर्णपदकों सहित 61 मेडल जीते. विपरीत परिस्थितियों में भी कभी उनका मनोबल नहीं डिगा. महाराष्ट्र के बीड जिले के अविनाश साबले को ही लीजिए. वह पहले मिस्त्री का काम करता था लेकिन सपने बड़े-बड़े देखता था. सेना में भर्ती के लिए जब गया तो सारे टेस्ट में पास हो गया लेकिन अपने शैक्षणिक प्रमाणपत्र साथ नहीं ले गया था तो उसे घर लौटना पड़ा. इसके अगले वर्ष उसने फिर सेना की परीक्षा दी. इस बार प्रमाणपत्र ले जाना नहीं भूला और सिलेक्ट हो गया! वहां उसकी ट्रेनिंग हुई और फिर केन्या के खिलाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए साबले ने अपनी सबल इच्छाशक्ति से 3000 मीटर स्टीपल चेज में गोल्ड मेडल जीता. उसने अपने गांव में माता-पिता के लिए बड़ा सा मकान बनवाया और नल की व्यवस्था की!’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ट्रिपल जम्प या तिकड़ी कूद में गोल्ड मेडल जीतनेवाले एल्डोस पॉल जब 4 वर्ष के बच्चे थे तभी उनकी मां चल बसी थी. उनकी बूढी दादी ने उन्हें पाला और पौष्टिक खुराक देती रही. बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल जीतनेवाली निकहत जरीन महिला मुस्लिम एथलीट है. सामाजिक दबाव के बावजूद उन्होंने कदम आगे बढ़ाए. पिता का पूरा प्रोत्साहन मिला. मां को अवश्य फिक्र थी कि बॉक्सिंग में चेहरे पर चोट लगी तो शादी में दिक्कत जाएगी लेकिन बेटी ने अपना लक्ष्य हासिल किया. आगे चलकर इन खिलाड़ियों से ओलंपिक में उम्मीद है. आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर इन्होंने देश को जीत का शानदार उपहार दिया.’’