nishanebaaz-Settle domestic disputes at home, why go abroad and cry

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, घर का झगड़ा घर में ही सुलझाना चाहिए. यदि विवाद नहीं सुलझता तो यहीं जमकर लड़-भिड़ लें. किसी तीसरे के पास जाकर शिकायत करने या रोना रोने की क्या जरूरत. बाहर के लोग समस्या को हल करने में कोई मदद नहीं करेंगे बल्कि मजाक उड़ाएंगे.’’

हमने कहा, ‘‘दुखी व्यक्ति को रोने के लिए किसी का कंधा लगता है. वह सोचता है- तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाएं, इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएं! वह यह भी कहता है- तुझे क्या सुनाऊं मैं दिलरूबा, तेरे सामने मेरा हाल है, तेरी एक नजर की बात है, मेरी जिंदगी का सवाल है. अपने अकेलेपन का बखान करते हुए वह कहता है- दिल के अरमां आंसुओं में बह गए, हम भरी दुनिया में तन्हा हो गए.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जो भी शिकवा-शिकायत या रोना-धोना हैं, यही निपटाएं, विदेश जाकर विलाप करने की क्या आवश्यकता है. कोई विदेशी नेता कभी भारत आकर अपनी समस्याओं के बारे में नहीं बताता. फिर अपने ही नेता ऐसा क्यों करते हैं? ताली दोनों हाथों से बजती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब जर्मनी और अमेरिका के दौरे पर गए थे तो उन्होंने दोनों देशों में बताया कि कांग्रेस के शासनकाल में कैसे-कैसे घोटाले हुए. दूसरी ओर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी कै्ब्रिरज विश्वविद्यालय में मोदी सरकार की नीतियों की निंदा की और कहा कि भारत में विपक्ष को बोलने की आजादी नहीं है. जब वे संसद में बोलते है तो माइक बंद कर दिया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि उनके फोन में पेगासस है जिससे उनकी जासूसी की जा रही है.’’

हमने कहा, ‘‘राहुल जब भी विदेश जाकर ऐसा आरोप और शिकायतवाला भाषण देते हैं, बीजेपी को नए सिरे से उनकी और कांग्रेस की आलोचना करने का मौका मिल जाता है. बीजेपी नेता कहते हैं कि राहुल विदेश जाकर भारत की बदनामी करते हैं. वे इसे राहुल की अपरिपक्वता बताते हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सच तो यह है कि यहां की मैली चादर बाहर ले जाकर क्यों धोनी चाहिए? क्या अपने देश में साबुन या डिटर्जेन्ट नहीं है?’’

हमने कहा, ‘‘वाशिंगटन शब्द का अर्थ समझिए. जहां टनों से कपड़े धोए जाएं, वह वाशिंगटन या दुनिया का सबसे बड़ा धोबीघाट है. इसीलिए नेता वहां का रुख करते हैं.’’