क्या वास्तव में हाईकमांड की जगह कार्यकर्ता चुन पाएंगे कांग्रेस का CM

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, अब तक तो यही देखा गया है कि कांग्रेस का मुख्यमंत्री वही बनता है जो हाईकमांड की नजर का नूर हो. सीएम के नाम का फैसला दिल्ली में होता है जिसे राज्य के नेता-कार्यकर्ता सभी को आंख मूंदकर स्वीकार करना पड़ता है लेकिन इस समय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गां

    धी ने कहा कि चुनाव के बाद कार्यकर्ता ही तय करेंगे कि कौन बनेगा पंजाब का सीएम! यह सराहनीय लोकतांत्रिक पहल है.’’

    हमने कहा, ‘‘किसी भ्रम में मत रहिए. कांग्रेस में वही होता है जो मंजूरे-हाईकमांड होता है! इसका तरीका यह है कि कोई नाम पहले से तय रहता है, उसे लेकर हाईकमांड के पर्यवेक्षक राज्य की राजधानी में आते हैं. फिर वे पार्टी के एक-एक विधायक को अलग-अलग बुलाकर समझा देते हैं कि हाईकमांड किसे मुख्यमंत्री के पद पर देखना चहता है. विधायक नाम पर अपनी सहमति जता कर हस्ताक्षर कर देते हैं. इसके बाद औपचारिक रूप से एक विधायक हाईकमांड की पसंद वाले नेता का नाम प्रस्तावित करता है और दूसरे उसका अनुमोदन कर देते हैं.

    इसे सर्वसम्मत चुनाव बताया जाता है. विधायकों की हर्षध्वनि के बीच पर्यवेक्षक नए सीएम के नाम की घोषणा कर देते हैं और उसकी शपथ विधि के बाद दिल्ली लौट जाते हैं. पर्यवेक्षकों का पर्यटन इस तरह पूरा हो जाता है. जहां 2 नेताओं के बीच झगड़ा है, वहां हाईकमांड किसी तीसरे को ऊपर से लाद देता है. वैसे भी 2 बिल्लियों की लड़ाई में बंदर का फायदा होने की कहानी आपने सुनी होगी.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इसका मतलब तो यही हुआ कि पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोतसिंह सिद्धू के बीच चल रही तकरार को रोकने के लिए राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं द्वारा सीएम चुने जाने का लॉलीपाप दिया है.’’

    हमने कहा, ‘‘कांग्रेस हाईकमांड कभी भी जनाधार रखनेवाले नेता को सीएम नहीं बनाता. वह किसी कठपुतली को यह पद देता है जो बात-बात में हाईकमांड का मुंह देखे और मंत्रियों की नियुक्ति से लेकर छोटे-छोटे मसले तक पूछने तथा आदेश लेने हर बार दिल्ली जाए. कांग्रेस किसी लोकप्रिय मजबूत नेता को सीएम इसलिए नहीं बनाती क्योंकि आगे चलकर वह हाईकमांड को चुनौती दे सकता है. हाईकमांड को राज्य में एक डमरू चाहिए जिसे हाथ में लेकर वह बजा सके.’’