कांग्रेस के बाद अब NCP की नजर शिवसेना पर

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एनसीपी (NCP) ने अच्छी तरह भांप लिया कि कांग्रेस(Congress) भले ही खुद को राष्ट्रीय स्तर की बड़ी पार्टी माने लेकिन वह महाराष्ट्र (Maharashtra) में ताकतवर नहीं है. यही वजह है कि राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार में वह तीसरे नंबर के जूनियर घटक की हैसियत रखती है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा भी था कि महाराष्ट्र में हम उस प्रकार के फैसले नहीं ले सकते जैसे कि राजस्थान में कर सकते हैं. राजस्थान में हमारी पार्टी की सरकार है जबकि महाराष्ट्र की सरकार में हम शामिल हैं. इस तरह कांग्रेस महाराष्ट्र के संबंध में अपनी विवशता स्वीकार कर चुकी है.

महाराष्ट्र में शरद पवार (Sharad Pawar) के कद्दावर नेतृत्व में एनसीपी हमेशा कांग्रेस पर भारी पड़ी है. राज्य स्तर पर कांग्रेस के किसी भी नेता का कद पवार के आसपास नहीं पहुंचता. जब कांग्रेस नेतृत्व की सरकार थी, तब भी मुख्यमंत्री को पवार की मर्जी का ध्यान रखना पड़ता था. पवार की दबंगियत की वजह से राज्य में कांग्रेस का प्रभाव सीमित होकर रह गया है. पश्चिम महाराष्ट्र में एनसीपी का जबरदस्त वर्चस्व है. कांग्रेस को दबाने के बाद एनसीपी की नजर अब शिवसेना पर है. यद्यपि शरद पवार शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के मित्र रहे हैं परंतु राजनीति में कोई पार्टी दूसरे दल के प्रति अनावश्यक उदारता नहीं दिखाती. उद्धव ठाकरे राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी शरद पवार की रणनीति की वजह से मुख्यमंत्री बने. महाविकास आघाड़ी बनाने में भी पवार की प्रमुख भूमिका रही जिसमें कट्टर हिंदुत्व वाली शिवसेना के साथ एनसीपी और कांग्रेस जैसी सेक्यूलर पार्टियां शामिल हैं. सरकार के किसी भी निर्णय में परदे के पीछे पवार का संकेत रहता है.

क्या बची रहेगी शिवसेना

महाराष्ट्र में निकाय चुनाव की तैयारियों के बीच राष्ट्रवादी पार्टी के नेताओं की बैठक हुई जिसमें कहा गया कि पार्टी शिवसेना के साथ लंबे समय तक राजनीति करने के लिए तैयार है. अजीत पवार और जयंत पाटिल जैसे एनसीपी के प्रमुख नेताओं ने अपनी पार्टी के उन नेताओं को हिदायत दी जो लोकसभा व विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. इन नेताओं को साफ बताया गया कि हम शिवसेना के साथ लंबे समय तक रहेंगे, इसलिए आपसी विवाद सुलझाए जाएं. महाविकास आघाड़ी सरकार का गठन होने के बाद से स्थानीय स्तर पर एनसीपी नेताओं व शिवसेना नेताओं के बीच विवाद चल रहे हैं. ऐसा न करते हुए साझेदारी मजबूत रखी जाए. इसके पीछे यही संकेत है कि लंबी साझेदारी तो चलेगी लेकिन अपनी पार्टी का प्रभाव कायम रखा जाए. स्पष्ट है कि अब एनसीपी की नजर शिवसेना पर है. ऐसी हालत में क्या शिवसेना बची रहेगी या अपना प्रभाव बढ़ाकर एनसीपी उसे निर्बल या निष्प्रभावी कर देगी? कांग्रेस के बाद अब एनसीपी का ध्यान शिवसेना को निपटाने पर होगा. पश्चिम महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ ही शिवसेना भी प्रभावी है. जब शिवसेना-बीजेपी की युति थी तो हिंदूवादी वोट एकजुट हो गए थे लेकिन अब वे बंट चुके हैं.