सोमनाथ मंदिर के नीचे मिली 3 मंजिला इमारत और बौद्ध गुफाएं

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वेरावल. एक खबर के अनुसार अब बारह ज्योतिर्लिंग में से एक सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) के नीचे भी एक ख़ुफ़िया 3 मंजिला इमारत होने का बात पता चली है। इसके बारे में IIT गांधीनगर और 4 सहयोगी संस्थाओं के ऑर्कियोलॉजी एक्सपर्ट्स ने पता लगाया है। कहा जा रहा है कि यह जांच प्रधानमंत्री और सोमनाथ मंदिर के ट्रस्टी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के कहने पर ही की गई। आज से करीब एक साल पहले PM मोदी ने दिल्ली में हुई एक मीटिंग में ऑर्कियोलॉजी विभाग को यह जांच करने का आदेश दिया था।

‘सोमनाथ’ के नीचे मिली एक L शेप की इमारत:

इस एक साल की जांच के बाद पुरातत्व विभाग की तरफ से 32 पेजों की एक रिपोर्ट तैयार कर सोमनाथ ट्रस्ट को सौंप दी गई है। रिपोर्ट में इस बाबत बताया गया है कि मंदिर के नीचे एक और L शेप की इमारत स्तिथ है। जांच में यह बात भी सामने आयी है कि सोमनाथ मंदिर के दिग्विजय द्वार से कुछ दूरी पर ही स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्टेच्यू के आस-पास भी अनेक बौद्ध गुफाएं भी हैं।

साइंटिफिक तरीके से हुई गहन जांच:

बताया जा रहा है कि इस खोजबीन में एक्सपर्ट्स ने करीब 5 करोड़ रुपए की आधुनिक मशीनों से मंदिर के नीचे व्यापक जांच की थी। जमीन के नीचे करीब 12 मीटर तक GPR इन्वेस्टिगेशन के बाद यहपता चला कि नीचे भी एक बड़ी पक्की इमारत है और इसमें प्रवेश द्वार भी है।

क्या है इस ‘सोमनाथ’ का इतिहास:

यह भी कहा जाता है कि सबसे पहले एक मंदिर ही अस्तित्व में था। दूसरी बार सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने इस मंदिर को बनवाया। फिर आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी थी। इसके बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईसवीं में इसे फिर से तीसरी बार बनवाया। इसके उपरांत इसके अवशेषों पर मालवा के राजा भोज और गुजरात के राजा भीमदेव ने चौथी बार एक व्यापक और भव्य निर्माण करवाया। फिर पांचवां निर्माण 1169 में गुजरात के राजा कुमार पाल ने भी करवाया था।

‘लौह पुरुष’ पटेल की देन है मौजूदा ‘सोमनाथ’:

इतिहास की माने तो मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1706 में फिर से इस मंदिर को गिरवा दिया था। इस बहुत समय के बाद जब जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा बना तब तत्कालीन गृहमंत्री और देश के ”लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल ने फिर जुलाई 1947 में सोमनाथ मंदिर को फिर से बनवाने का आदेश दिया था। यह नया मंदिर साल 1951 में बनकर तैयार हुआ था।