जिले में कई बस स्टैंड खस्ताहाल; लोगों को तेज धूप में करना पड़ता है बसों का इंतजार

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    • पेयजल के लिए भटकते है लोग

    चंद्रपुर. राज्य परिवहन मंडल द्वारा जनप्रतिनिधियों की निधि और उद्योगों एवं सार्वजनिक उपक्रमों के सामाजिक दायित्व फंड सीएसआर से ग्रामीण अंचलों में यात्रियों की सुविधा के लिए निर्मित कई बस स्टापेजों के काफी बुरे हाल होने से यात्रियों का भीषण गर्मी में काफी बुरा हाल हो रहा है.वहीं जहां बस स्टैंड है वहां पंखें बंद होने, पेयजल की पर्याप्त ना होने से भी यात्रियों की यह गरमी जमकर परीक्षा ले रही है. ग्रामीण अंचलों में ग्रामों के जो स्टापेज होते है वहां पर्याप्त व्यवस्था किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है.

    इन स्टापेजों में कई स्थान पर पिछले दिनों आये आंधी तूफान की वजह से शेड उड़ चुके है और कई स्थानों पर जानवरों ने डेरा डालकर गंदगी फैला रखी है. इसके चलते भीषण गरमी में यात्रियों के काफी बुरे हाल हो रहे है. यात्रियों को लू से बचने के लिए आसपास के पेड़ों और चायटपरी आदि स्थानों का सहारा लेकर बस की प्रतीक्षा करने की नौबत आ गई है. जिस तरह भीषण गरमी में हाल बेहाल है उसी तरह आनेवाले दिनों में मानसून लगने के बाद तो यात्रियों के लिए और भी विकट स्थिति निर्माण हो सकती है.

    इसी तरह राजुरा, कोरपना, गडचांदूर, सावली, मूल आदि क्षेत्रों में भी रोड के किनारे बनाये गए बसों के स्टापेजों के हाल काफी बुरे है, यहां यात्रियों के लिए खड़ा रह पाना कठिन है. सावली तहसील के अंतरगावं, निफंद्रा, निमगांव, डोंगरगांव, आसोलामेंढा आदि स्थानों पर तो बस स्टापेज गांव की बस्ती से काफी दूर रोड पर होने से भरी दोपहर में पैदल चलकर लोग यहां पहुंचते है.

    परंतु वहां पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था ना होने से लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है. जनप्रतिनिधियों द्वारा परिसर में अपनी विकास निधि से बस स्टापेज बनाकर दिए गए है परंतु इनकी देखरेख और साफ-सफाई के अभाव में बस स्टापेज लावारिस जानवरों का अड्डा बन चुके है. यहां लावारिस जानवरों ने मलमूंत्र कर इतनी गंदगी फैला दी है कि यात्रियों का बैठना दूर खड़े रह पाना कठिन है.

    कई स्थानो पर बस स्टापेज पूरी तरह से टूट गए है, बैठने की व्यवस्था नहीं है, यात्री खड़े रहेंकर बस की प्रतीक्षा करते है, ऐसे में बस की प्रतीक्षा में पहुंचे यात्रियों को मजबूरन आसपास के पेड़ की छांव या फिर चाय टपरी अथवा किसी के मकान की छत की छांव का सहारा लेना पड़ता है. बस स्टापेज के ना ना ही यात्रियों के लिए प्रसाधनगृह की व्यवस्था होती है ना ही पेयजल की कोई सुविधा होती है.भीषण गर्मी में तो लोग पेयजल के लिए दर दर भटकते है या फिर पानी पाऊच खरीदकर पीते है. बिजली खंबों पर पथदीप बंद पड़े होने से शाम को अंधकार छा जाता है.

    अंधेरे में ही बस स्टापेज से भीतर आधा से एक किमी दूरी गांव तक लोग जान हथेली पर रखकर जाते है, सबसे ज्यादा जोखिम वन क्षेत्र में रहनेवाले यात्री उठाते है. काफी प्रतीक्षा करने के बाद बस पहुंचती है तो उसमें यात्री ठसाठस भरे होती है जैसे तैसे लोग बस में चढ पाते है. कई बस स्टापेजों को तो चायटपरी और पानठेला संचालकों ने अपने व्यवसाय का ठिकाना बना लिया है.इसके कारण यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिला प्रशासन एवं रापनि द्वारा यात्रियों को हो रही परेशानियों को देखते हुए उपाययोजना किए जाने से ही यात्रियों को राहत मिल सकती है.