Dhule Lok Sabha Seat
धुले लोकसभा सीट (डिजाइन फोटो)

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नवभारत डेस्क : महाराष्ट्र की धूल संसदीय सीट (Dhule Lok Sabha Seat) पहली बार भारतीय जनसंघ के खाते में गई थी, लेकिन इस सीट पर अब तक केवल दो ही दलों का कब्जा रहा है। तीसरे दल को यहां से चुनाव जीतने में अभी तक सफलता नहीं मिली है । कांग्रेस (Congress) पार्टी ने इस सीट को 10 बार जीतने में सफलता पाई है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनसंघ के उम्मीदवारों केवल 6 बार इस सीट पर चुनाव को जीतने में सफलता मिली है। अगर पिछले डेढ़ दशक का रिकॉर्ड देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी की ओर से उतारे गए उम्मीदवारों ने पिछले 15 सालों में इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है।

Dhule Lok Sabha Seat
धुले लोकसभा सीट (डिजाइन फोटो)

आपको बता दें कि 1957 में जब इस संसदीय सीट का निर्माण हुआ तो भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार उत्तम राव पाटिल उर्फ नानासाहेब में इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था । उत्तम राव पाटिल के बाद कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार चूड़ामन आनंद रवांडले ने 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तम राव लक्ष्मण पाटिल को हरा दिया और कांग्रेस पार्टी को पहली बार जीत दिलाई। इस चुनाव में चूड़ामन आनंद रवांडले को 2 लाख 4 हजार 461 वोट पाकर जीते थे।

इसके बाद इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ने अपनी हैट्रिक लगाई और लगातार तीन चुनाव जीते। इसके बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उनकी जगह विजय कुमार नवल पाटिल को उतारा। इन्होंने भी कांग्रेस पार्टी के खाते में यह सीट डाल दी। देशभर में जनता पार्टी की लहर के बावजूद कांग्रेस पार्टी की सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रहे। इसके बाद विजय कुमार नवल पाटिल दूसरी संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी की, तो इस सीट पर कांग्रेस पार्टी ने रेशमा मोतीराम भोये को उम्मीदवार बनाकर उतारा और वह कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल करने में सफल रहे। भोये आनंद पाटील के बाद दूसरे ऐसे कांग्रेसी उम्मीदवार थे, जिन्होंने इस सीट पर लगातार तीन बार चुनाव जीत कर हैट्रिक लगायी। उन्होंने 1980, 1984 और 1989 का चुनाव कांग्रेस पार्टी की टिकट पर जीता।

Dhule Lok Sabha Seat
धुले लोकसभा सीट (डिजाइन फोटो)

इसके बाद 1991 में यह सीट एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के खाते में गई, जब बापू हरी चौरे ने यह सीट कांग्रेस के लिए जीती। लेकिन 1996 के चुनाव में साहेब राव बगुल ने पहली बार भाजपा के लिए यह सीट जीती। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने फिर से रिकवरी की धनजी अहीरे ने यह सीट 1998 में भाजपा से छीन ली और कांग्रेस के खाते में डाल दी। 1999 में भाजपा के रामदास गावित ने फिर कांग्रेस को हरा दिया, लेकिन 2004 में फिर कांग्रेस ने यह सीट जीती। बापू हरी चौरे एक बार फिर सांसद बने। यही कांग्रेस के आखिरी सांसद हैं।

2009 से लेकर अब तक हुए तीन चुनावों दोनों बड़ी पार्टियों ने जीत हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया है, लेकिन कांग्रेस पर भाजपा भारी रही है। 2009 के चुनाव में प्रताप सिंह सोनवणे की जीत के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने इस पर अपना कब्जा बनाए रखा है। लगातार उसके बाद लगातार दो लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने डॉक्टर सुभाष भांगरे को अपना उम्मीदवार बनाया है और वह जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। अब की तीसरी बार भी भारतीय जनता पार्टी इन पर अपना दाव खेला है।

Dhule Lok Sabha Seat
धुले लोकसभा सीट (डिजाइन फोटो)

यहां टक्कर देती है ओवैसी की पार्टी

धुले लोकसभा मे मालेगांव सेंट्रल, मालेगांव आउटर, बगलान, धुले सिटी, धुले ग्रामीण और शिंदखेड़ा धुले लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्र हैं, मालेगांव सेंट्रल और धुले सिटी में एमआईएम के विधायक हैं। लेकिन भाजपा को धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण लोकसभा क्षेत्रों में सफलता मिल रही है, क्योंकि बाकी 4 विधानसभा सीटों पर भाजपा मजबूत है। यहां के दो विधानसभा क्षेत्रों, धुले शहर और मालेगांव शहर में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक आबादी के कारण यहां अक्सर भाजपा पिछड़ती है, लेकिन बाकी इलाकों में कवर करके यह सीट जीतने में सफल रही है। इस इलाके में एआईएमआईएम जैसी कट्टर धार्मिक पार्टियों ने भी अपनी जोरदार दस्तक दी है।

इसलिए उन्होंने भी लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी के लिए कदमताल शुरू कर दी है। अगर उनका मजबूत कंडीडेट उतरता है तो वोटों का ध्रुवीकरण और बढ़ेगा। मौजूदा लोकसभा सांसद सुभाष भामरे ने एक बार फिर बीजेपी से अपनी उम्मीदवारी का ऐलान किया है। भाजपा नेता जानते हैं कि इस इलाके में विकास कार्य से ज्यादा हिंदू कार्ड चलता है। पिछले दो बार के सांसद के कार्यकाल में उन्होंने क्षेत्र में कोई खास काम नहीं किया है, बल्कि शिवपुराण, धर्म जागृति सभा, कलश यात्रा, हिंदू राष्ट्र दिवस, श्री राम मंदिर प्रतिकृति यात्रा, हिंदू जन जागरण यात्रा, श्री राम मंदिर के भव्य अरास का निर्माण, रुद्राक्ष वितरण पर जोर दिया गया है। इसी वजह से विकास कार्यों को लेकर कुछ लोग नाराज दिखते हैं।