child
Representative Image

    Loading

    नंदुरबार : जिले में माता (Mothers) और नवजात बालकों (Newborns) की मौतों का प्रमाण चिंता का विषय बना हुआ है। जिसके लिए प्रशासन (Administration) की ओर से उपाय किया जाना जरुरी है। नंदुरबार जिले के जिला अस्पताल (Hospitals) और ग्रामीण अस्पतालों (Rural Hospitals) से जो आंकड़े सामने आए इससे हड़कंप मच गया है। जिससे साबित होता है कि यहां की स्वास्थ्य प्रणाली (Health Systems) में कमजोरी हैं। प्रशासन का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में मौतों को रोकने के लिए सभी उपाय किए जा रहे हैं, उसके बाद भी नवजात शिशुओं की मौतों (Deaths) का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है। 

    उत्तर महाराष्ट्र के सभी जिलों से अधिक संख्या

    नुदंरबार जिले में जनवरी से जून इन 6 महीनों में प्रसुती के लिए भर्ती की गई माताओं में से 10 महिलाओं की प्रसुती के दौरान मौत हो गई। वहीं 86 नवजात बच्चों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी है। ये पूरे उत्तर महाराष्ट्र में सभी जिलों से अधिक संख्या हैं। नंदुरबार जिला कुपोषण और माता मृत्यू के नाम से पहचाना जाने लगा है। लेकिन जिला प्रशासन और स्वास्थ विभाग केवल कागजी घोडे दौडा रहा है। 

    सुविधाएं मुहैया कराने में खर्च किये जाते है करोड़ों रुपए 

    सरकार की ओर से विभिन्न योजनाओं के होते हुए भी मौतों का आंकड़ा क्यों बढ़ रहा है। ऐसा सवाल नागरिकों द्वारा उठाया जा रहा है। जबकि सरकार आदिवासियों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है। इसके बावजूद यहा आदिवासी बहुल इलाकों में नागरिक सड़क एम्बुलेंस स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं से जूझ रहे। जिले में माता मृत्यू और नवजात बालों की मौतों का प्रमाण चिंता का विषय है। जिसके लिए प्रशासन को गंभीर होना होगा। 

    सरकार ने नवजात बच्चों की मौतों को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं। लेकिन इतनी सरकारी सुविधा होने के बाद भी नंदुरबार जिले में प्रसुती के समय माताओं की मौत को राकने में यहां की स्वास्थ प्रणाली असफल साबित हुई है। नागरिकों ने आरोप लगाया है कि अधिकांश चिकित्सक अस्पतालों में पूरे समय नहीं होने के कारण यह मामले बढ़ रहे हैं। 

    मौत रोकने में असफल स्वास्थ्य प्रणाली

    जिले में आज भी घरों पर बच्चों को जन्म देने का मामला आम है। साथ ही इस गर्भवती महिलाओं और पैदा होने वाले बच्चों का सरकारी पंजीकरण भी नहीं किया जाता है। एैसे में नवजात बालकों की मौतों का प्रमाण अधिक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। केवल अस्पतालों में होने वाली प्रसुती का ही पंजीकरण किया जाता है। लेकिन घरों में प्रसुती करने का प्रमाण भी अधिक है, जिसका कहीं भी पंजीकरण नहीं किया जाता है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ प्रणाली पर करोड़ों रुपए अनुदान मिलने के बाद भी नंदुरबार जिले में प्रशासन की लापरवाही मौतों के इन आंकडों से सामने आ गई है। 

    शहरी और ग्रामीण सरकारी अस्पतालों में एम्बुलेंस की सुविधा के साथ-साथ दवाईयों और इमरजेंसी मरीजों के लिए उपचार की सुविधा उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ यंत्रणा में अधूरापन यहां के नागरिकों के लिए अब मौत बन गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां ग्रामीण क्षेत्र के नागरिक इसी भय के कारण घरों में महिलाओं की प्रसुती करना पसंद करते हैं।