लातूर में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई, जानें लातूर लोकसभा सीट का इतिहास भूगोल

Loading

अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित
कांग्रेस गढ़ पर फिलहाल है भाजपा है कब्जा
अखिलेश कुमार मिश्र @नवभारत
मुंबई: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री शिवाजीराव पाटिल का गढ़ रहे लातूर लोकसभा क्षेत्र में एकबार फिर भाजपा एवं कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई के आसार दिखने लगे हैं। भाजपा ने इस सीट पर हैट्रिक करने के लिए जहां वर्तमान सांसद सुधाकर शृंगारे पर विश्वास जताया है। वहीं कांग्रेस ने इस बार सीट पर कब्जा ज़माने के लिए डॉ.शिवाजी कालगे को मैदान में उतारा है। लातूर लोकसभा के लिए तीसरे चरण में यानी 7 मई को मतदान कराया जाना है। लातूर सीट पर जीत हासिल करने के लिए भाजपा के नेतृत्ववाली महायुति एवं विपक्षी दलों के गठबंधन महाविकास आघाड़ी (इंडिया) की तरफ से प्रचार कार्य शुरू हो गया है। 

इमरजेंसी के बाद उस्मानाबाद लोकसभा क्षेत्र का विभाजन कर बनाये गए लातूर लोकसभा क्षेत्र पर शुरू से ही कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। वर्ष 1982 में लातूर नया जिला गठित हुआ। लेकिन उसके पहले से इस इलाके में कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर तुलसीराम कांबले तीन बार एवं शिवाजीराव पाटिल चाकूरकर 6 बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भारतीय किसान एवं मजदूर पार्टी के उद्धव राव पाटिल सांसद निर्वाचित हुए थे। वर्ष 2004 में भारतीय जनता पार्टी की रूपताई पाटिल निलंगेकर ने शिवराज पाटिल के चक्रव्यूह को तोड़ कर चुनाव जीता था। उस समय निलंगेकर ने  शिवराज पाटिल को 30,551 वोटों से शिकस्त दी थी, लेकिन पांच साल बाद वर्ष  2009 में इस सीट से कांग्रेस के जयवंत आवले ने जीत हासिल कर यह बताने का प्रयास किया लातूर कांग्रेस का गढ़ है। हालांकि वर्ष  2014 एवं 2019 में इस सीट पर मोदी लहर का जादू चला। 2014 में बीजेपी से सुनील गायकवाड एवं 2019 में सुधाकर शृंगारे विजयी हुए। पिछले चुनाव भाजपा उम्मीदवार सुधाकर शृंगारे को 6,61,495 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के मछिन्द्र कामत को 3,72 ,384 मिले थे। वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवार राम गारकर 1,12,255 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर थे। 6,564 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। 

अकाल ग्रस्त इलाका है लातूर 
एजुकेशन हब माने जाने वाले लातूर जिले में बड़ी संख्या में चीनी मिले हैं। रेल कारखाना तैयार हो रहा है, लेकिन लातूर जिला अकाल वाले क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। कुछ साल पहले जिले में पानी की बहुत अधिक किल्लत हो गयी थी। जलापूर्ति के लिए ट्रेन का सहारा लेना पड़ा था। रेल टैंकरों से लातूर शहर एवं अन्य इलाकों में लोगों को पीने के लिए पानी पहुंचाया गया था। इसके अलावा भी जिले में काई तरह की समस्याएं हैं। जो हर चुनाव में राजनीतिक मुद्दा बनाते रहे हैं लेकिन चुनाव खत्म के बाद वे  गायब हो जाते हैं। 

लातूर लोकसभा क्षेत्र में  लातूर ग्रामीण, लातूर शहर, अहमदपुर, उदगीर, निलंगा एवं नांदेड जिले के लोहा  विधानसभा क्षेत्र का समावेश है। पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा मिलकर मैदान में उतरी थी, लेकिन लातूर में उसे कुछ खास सफलता नहीं मिली थी। लातूर शहर एवं ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटों अमित देशमुख एवं धीरज देशमुख ने अपना वर्चस्व कायम रखा वहीं अहमदपुर से राष्ट्रवादी कांग्रेस के संजय बनसोडे एवं उदगीर से बाबासाहेब पाटिल ने जीत हासिल की। नांदेड के लोहा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय श्यामसुंदर शिंदे निर्वाचित हुए थे। भाजपा के खाते में महज एक सीट गयी थी। निलंगा विधानसभा क्षेत्र से संभाजी पाटिल निलंगेकर निर्वाचित हुए थे। इस चुनाव में परिस्थितियां पूरी तरह बदली हैं। शिवसेना एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी विभाजित हो गयी है वहीं मराठवाड़ा के दिग्गज कांग्रेसी नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण सहित काई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं। मराठा आरक्षण को लेकर मनोज जरांगे के नेतृत्व में हुआ आंदोलन भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा।