Competition Stress
प्रतीकात्मक तस्वीर

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    मुंबई:  मुंबई (Mumbai) सहित देशभर में मानसिक समस्या (Mental Problems) तेजी से बढ़ रही है। एक्सपर्ट्स की माने तो लगभग 90 % फीसदी लोगों में किसी न किसी बात का तनाव (Stress) रहते है। कई बार लोग सुसाइड (Suicide) भी कर लेते हैं। लोगों के इस तनाव को दूर करने के लिए इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी (IPS) ने नेशन सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन नंबर (Helpline Number) 18005320807 लांच किया है। 

    आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों पर काम, पढ़ाई, पारिवारिक और अन्य चीजों को मैनेज करने को लेकर प्रेशर बना रहता है। कई बार लोग इस प्रेशर को झेलने में नाकाम हो जाते हैं और अपने परेशानियों को किसी के साथ साझा नहीं कर पाते हैं। काफी लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और अंत में सुसाइड कर लेते हैं। यह समस्या दिन-ब दिन विकराल रूप ले रही है। मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोग अक्सर अपनी पीड़ा अपनों के साथ शेयर नहीं करते हैं। यही कारण होता है कि वे अपने आप को अकेला महसूस करने लगते हैं। 

    डॉक्टरों के पास जाने से हिचकिचाते हैं लोग

    आईपीएस के अध्यक्ष डॉ. गौतम शाह ने बताया कि मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोग डॉक्टरों के पास जाने से हिचकिचाते हैं, लेकिन फ़ोन के तहत वे अपनी समस्याओं के बारे में बताते हैं। इसलिए हमने यह हेल्पलाइन नंबर शुरू कर लोगों की समस्याओं को दूर करने और उन्हें मानसिक रूप से प्रबल बनाने का ध्यय रखा है। फ़ोन से सारी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है, लेकिन समस्या के निवारण के यह पहला कदम है। दुनिया में होनेवाले कुल सुसाइड में से 54 फीसदी सुसाइड भारत और चीन में रिपोर्ट होते हैं। उक्त आंकड़े बेहद चिंताजनक है। अब समय आ गया है कि इस समस्या को सुलझाया जाए।

    रात 8 से 2 बजे तक कर सकते हैं कॉल

    डॉक्टरों की माने तो डिप्रेशन से जूझ रहे व्यक्ति को अक्सर रात में ही सुसाइड के ख्याल आते हैं। इसी के मद्देनजर उक्त हेल्पलाइन नंबर रात 8 बजे से 2 बजे तक चालू रहेगा। जल्द ही इसे 24×7 चलाने की योजना बनाई जा रही है। इसके अलावा हेल्पलाइन नंबर अनेक भाषा में उपलब्ध होगी।

    आईपीएस ने हेल्पलाइन नंबर लांच कर मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाया है। यह एक अच्छी पहल, यह काम सरकार को करना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए भी सरकार अपनी ओर से नेशनल हेल्पलाइन नंबर क्यों नहीं लांच कर रही है?

    -डॉ. सागर मूंदड़ा, मनोचिकित्सक