Mayo Hospital

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    नागपुर. 7 वर्ष के बालक को बीमारी के बाद मेयो में भर्ती किया गया. उसे खून की जरूरत थी लेकिन पिता मजदूर होने के कारण आर्थिक हालत खराब है. उनके लिए खून का इंतजाम करना मुश्किल हो गया. मेयो प्रशासन ने भी अपनी लाचारी दिखाते हुए किसी भी तरह की मदद से इनकार कर दिया है. इंदिरा गांधी शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से रक्तदान किया जाता है. एक व्यक्ति के रक्तदान से तीन मरीजों को लाभ मिलता है. मेयो में रक्त विघटन प्रकल्प भी है लेकिन रक्त विघटन नहीं किये जाने से ही रक्त की कमी होती है.

    बताया जाता है कि मैन पावर की कमी की वजह से रक्त घटक अलग करने की प्रक्रिया रुक गई है. इसका सीधा असर निर्धन मरीजों को हो रहा है. इस संबंध में सेवा फाउंडेशन की ओर से शिकायत की गई है. दरअसल 7 वर्षीय बालक के पिता सलमान की लॉकडाउन के कारण आर्थिक हालत कमजोर हो गई है. बच्चे को दुर्लभ बीमारी होने से अब बोन मेरो करना ही एकमात्र पर्याय रह गया है. इस बीमारी में बार-बार रक्त की जरूरत पड़ती है. मदद से मिले पैसे से उपचार चल रहा है. बालक 2 जनवरी से मेयो के पीआईसीयू में भर्ती है.

    रक्त विघटन प्रकल्प 

    मेयो में रक्तदान से मिले रक्त से प्लेटलेट, पेशी व अन्य घटकों को अलग किया जाता है. लेकिन मैन पावर की कमी की वजह से प्रक्रिया रुकी पड़ी है. प्रशासन भी गंभीरता नहीं दिखा रहा है. मरीजों को निजी ब्लड बैंक से जरूरत पुरी करने की सलाह दी जाती है. पिता ने अब तक 37 प्लेटलेट्स ब्लड यूनिट जमा किया. इसके लिए 26,000 रुपये का खर्च आया लेकिन अब रकम नहीं है. यही वजह है कि वह परेशान हो गया है.

    मेयो प्रशासन ने भी अपनी लाचारी दिखा दी. सेवा फाउंडेशन के राज खंडारे ने बताया कि जब मेयो में रक्त विघटन प्रकल्प है तो फिर नियमित रूप से जारी रखना प्रशासन का काम है. इस वजह से निर्धन मरीजों को भटकने की नौबत आये तो फिर प्रकल्प का मतलब ही नहीं रह जाता.