28 को कांग्रेस का स्थापना दिवस, नागपुर से ‘मिशन-2024’ का आगाज, पुराना है पार्टी का संतरा नगरी से नाता

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  • 1891 में नागपुर में कांग्रेस कार्यकारिणी का अधिवेशन हुआ था
  • 26 दिसंबर, 1920 के अधिवेशन में आए थे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू
  • 1959 के अधिवेशन में गूंगी गुड़िया से बनी थीं इंदिरा गांधी

नागपुर: हाल ही में देश में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने कुछ खास कमाल नहीं किया है। पांच में से केवल एक ही राज्य में कांग्रेस की सरकार आई है। ऐसे में अब आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने अपनी कमर कस ली है। जी हां कल यानी 28 को संतरा नगरी नागपुर से कांग्रेस अपने स्थापना दिवस पर मिशन 2024 ‘है तैयार हम’ की शुरुआत कर रहा है। वैसे आपको बता दें की कांग्रेस पार्टी का नागपुर से बहुत पुराना नाता है, जब जब पार्टी का प्रभाव काम हुआ है तब तब कोंग्रेसी नेताओं ने नागपुर से फिर से खड़े होकर उठने का प्रयास किया है। आज हम आपको कांग्रेस ने कितनी बार कब और कैसे नागपुर से आकर चुनावी रणनीति की शुरवात की है इसके बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहे है। 

देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने की रणनीति हो या फिर इंदिरा गांधी को संकटकाल में मुखर बनने की ताकत, नागपुर में ही मिली थी। महात्मा गांधी को यहां हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिवेशन में ही अंग्रेजों से संघर्ष की रणनीति बनाने की अनुमति मिली थी और इंदिरा गांधी को नागपुर में हुए अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था और उन्हें शरनी को पहचान मिली थी। आजादी के बाद भी जब-जब कांग्रेस खतरे में आई तब नागपुर सहित संपूर्ण विदर्भ ने उन्हें ताकत प्रदान की। अब 28 दिसंबर, 2023 को नागपुर में ही कांग्रेस का चौथा राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अधिवेशन होने वाला है। इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे सहित देश भर के पार्टी नेता शामिल होंगे। समझा जा रहा है कि जिस संघ भूमि से भाजपा को ताकत मिल रही है उसी भूमि से कांग्रेस आगामी चुनाव के मद्देनजर ‘मिशन- 2024’ का ऐलान करने जा रही है। प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले सहित सभी स्थानीय पार्टी नेता मान रहे हैं कि यह अधिवेशन पार्टी में जान फूंकेगा। कम से कम 10 लाख कार्यकर्ता इसमें शामिल होने का दावा नेता कर रहे हैं। 

Mahatma Gandhi 

सर्वमान्य नेता बने थे महात्मा गांधी

देश से अंग्रेजी हुकूमत को खदेड़ने के लिए कांग्रेस अपनी अंतिम रणनीति तैयार कर रही थी और वह रणनीति नागपुर में फाइनल हुई थी। सिंतबर 1920 में कोलकाता में आयोजित कांग्रेस के विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा था लेकिन कोलकाता में इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। उसके बाद 26 दिसंबर, 1920 को नागपुर में वार्षिक अधिवेशन आयोजित हुआ जिसमें महात्मा गांधी, पं। जवाहरलाल नेहरू सहित कांग्रेस के दिग्गज नेता शामिल हुए थे। नागपुर में यह दूसरा अधिवेशन था। इसके पूर्व वर्ष 1891 में नागपुर में कांग्रेस । 1920 में हुए अधिवेशन में महात्मा गांधी के प्रस्तावों को मंजूरी मिली थी और देशभर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए थे। इस अधिवेशन में गांधी को सर्वमान्य नेता के रूप में पहचान मिली। अधिवेशन में प्रस्ताव पारित होने के बाद सिरसपेठ में पूनमचंद राका की जगह पर पहला असहयोग आश्रम और बाद में जनरल आवारी के घर पर दूसरा असहयोग आश्रम बना था।  

नागपुर से मिली थी इंदिरा को ऊर्जा 

  • इमरजेंसी के समय कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई थी लेकिन उस कठिन समय में भी नागपुर से उन्हें ताकत मिली थी।
  • उस समय नागपुर के गेव मंचराशा आवारी, वसंत साठे इंदिरा गांधी के साथ प्लेन से नागपुर पहुंचे थे। उन्हें पवनार आश्रम वर्धा जाना था। श्रीमती गांधी को लग रहा था कि यहां उनका भारी विरोध होगा लेकिन जैसे ही आवारी व साठे के कहने पर बाहर आईं तो हजारों की संख्या में कार्यकर्ता उनका स्वागत करने के लिए बाहर खड़े थे। 
  • भीड़ इतनी थी कि उन्हें पवनार जाने में 4-5 घंटे लग गए। 3 दिन वे वहां रहीं और सभी कार्यकर्ताओं से मिलती रहीं। यहां से लौटने के बाद वे फिर सत्ता में लौटीं।

जब इंदिरा बनीं अध्यक्ष

आजादी के बाद वर्ष 1959 में नागपुर के कांग्रेसनगर में ही पार्टी का तीसरा अधिवेशन हुआ। इंदिरा के लिए यह उनका पहला अधिवेशन था। तब तक पार्टी में उनकी पहचान एक न बोलने वाली व शांत रहने वाली गुड़िया के रूप में ही थी। इसी अधिवेशन में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। अधिवेशन के दौरान उन्होंने अपनी गुड़िया की छवि को तोड़ा जब नेहरू अपना भाषण दे रहे थे और निर्धारित समय होने के बावजूद उन्होंने बोलना समाप्त नहीं किया था। इंदिरा गांधी ने तब बेल बजाकर उन्हें रोक दिया था। मंच पर बैठे सभी पदाधिकारी चौंक उठे थे और इंदिरा की ओर देखने लगे थे। उन्होंने घड़ी की ओर इशारा कर रुकने को कहा। उनके इस स्टाइल पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने जमकर तालियां बजाई थीं।

बैल जोड़ी था चुनाव चिह्न

उस दौरान कांग्रेस का चुनाव चिह्न बैल जोड़ी हुआ करता था। वर्ष 1959 के अधिवेशन में अपने नेताओं का स्वागत करने के लिए शहर कांग्रेस की ओर से 64 बैल जोड़ियों की एक रैली निकाली गई थी। अधिवेशन के बाद ही उस इलाके का नाम ‘कांग्रेसनगर’ हो गया।

 

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा…

ऐसे में अब कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है, ”कल कांग्रेस पार्टी का स्थापना दिवस है और नागपुर में ‘हैं तैयार हम’ रैली का आयोजन किया गया है। सभी राज्यों से कांग्रेस पार्टी के सभी नेता और कार्यकर्ता इसमें शामिल होंगे। 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी  हैं।”