Nagpur High Court
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    नागपुर. एग्रीमेंट के अनुसार सेवाएं उपलब्ध नहीं कराए जाने का हवाला देते हुए मनोहर मेंढेकर की ओर से बिल्डर और डेवलपर प्रशांत वासनकर के खिलाफ जिला ग्राहक विवाद निवारण आयोग में शिकायत की गई थी. जिस पर 2015 में ही आयोग ने ब्याज सहित राशि का भुगतान करने के आदेश वासनकर को दिए थे. इसका पालन नहीं किए जाने पर शिकायतकर्ता की ओर से पुन: जुर्माना ठोंकने और आदेश का पालन सुनिश्चित कराने के लिए अर्जी दायर की गई.

    इस मामले में याचिकाकर्ता वासनकर ने भी जमानत के लिए अर्जी दायर की थी लेकिन इसे ठुकरा दी गई. जिससे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि याचिकाकर्ता वर्ष 2014 से विभिन्न मामलों में जेल में बंद है. इसकी जानकारी होने के बावजूद उसे फरार घोषित कर जमानत देने से इनकार किया गया. सुनवाई के बाद न्यायाधीश विनय जोशी ने इस मामले में 15,000 रु. के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए. 

    लगातार जारी होते रहे वारंट

    सुनवाई के दौरान वासनकर की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता 27 जुलाई 2014 से अन्य मामलों के लिए जेल में बंद है. जिला ग्राहक आयोग को इसकी भलीभांति जानकारी थी. इसके बावजूद वर्ष 2017 के बाद से आयोग द्वारा लगातार याचिकाकर्ता को पेश करने के वारंट जारी किए जाते रहे हैं. जिस समय याचिकाकर्ता जेल में था, उसी समय पेश होने के वारंट जारी हुए हैं. अत: इसके लिए याचिकाकर्ता को फरार घोषित करना तर्कसंगत नहीं है.

    इसके पूर्व भी अन्य मामलों में ग्राहक आयोग की ओर से इसी तरह के आदेश याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी किए गए. जिसके दस्तावेज सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष पेश किए गए. दोनों पक्षों की दलीलों के बाद अदालत ने आदेश में कहा कि प्राथमिक स्तर पर जमानत ठुकराने के लिए जो कारण दिए गए, वह तर्कसंगत नहीं है. जिससे अदालत ने मेंढेकर और जेल अधीक्षक को नोटिस भी जारी किया. साथ ही 2 सप्ताह में जवाब दायर करने के आदेश दिए.