Mayo Hospital

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    नागपुर. राज्यभर के मेडिकल कॉलेजों में प्राध्यापकों की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है. जब भी नेशनल मेडिकल कौंसिल (एनएमसी) का निरीक्षण होता है तो प्राध्यापकों को एक से दूसरे कॉलेज में प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है. निरीक्षण पूर्ण होने के बाद प्राध्यापक अपनी जगह लौट आते हैं. पिछले दिनों गोंदिया और चंद्रपुर मेडिकल कॉलेज के निरीक्षण के लिए मेडिकल नागपुर और मेयो से प्राध्यापकों को भेजा गया था लेकिन अब एनएमसी ने मेडिकल कॉलेजों का औचक निरीक्षण शुरू किया है. यही वजह है कि कॉलेजों में हडकंप मचा हुआ है. 

    स्नातकोत्तर की सीटों की मान्यता के लिए हर वर्ष एनएमसी द्वारा कॉलेजों का निरीक्षण किया जाता है. पिछले दिनों यवतमाल मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग का निरीक्षण किया गया. विभाग ने 3 बढ़ी हुईं सीटों की मान्यता की मांग की थी लेकिन निरीक्षण के दौरान प्राध्यापकों की कमी पाई गई. इंदिरा गांधी शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल के मेडिसिन विभाग में पहले 6 सीटें थीं लेकिन बाद में 6 नई सीटों की मान्यता दी गई. सीटें बढ़ने के बाद मैन पॉवर भी बढ़ाया जाना था लेकिन ‘उधारी’ की नीति पर कार्य करने वाले वैद्यकीय शिक्षा व अनुसंधान विभाग ने गंभीरता नहीं दिखाई.

    प्रशासन नहीं गंभीर 

    मेयो के मेडिसिन विभाग में अगस्त 2019 से प्राध्यापकों के 2,  सहायक प्राध्यापक के 3 और वरिष्ठ निवासी डॉक्टरों के 6 पद खाली हैं. अब यदि एनएमसी द्वारा निरीक्षण किया जाता है तो विभाग की बढ़ी हुईं 6 सीटों पर तलवार चल सकती है. यही वजह है कि निरीक्षण से पहले एक बार प्रतिनियुक्ति पर भेजने की कवायद शुरू की जाएगी. बताया जाता है कि राज्यभर के 22 मेडिकल कॉलेजों में 13 विविध विषयों में अकेले सहायक प्राध्यापक के 946 पदों में से 60 फीसदी यानी 586 सीटें रिक्त हैं. यह आंकड़ा बहुत बड़ा है जबकि नियुक्ति की दिशा में प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता नहीं बरती जा रही है.

    वर्षों तक भर्ती की प्रतीक्षा

    एक ओर सरकार द्वारा नये-नये मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा तो की जा रही है लेकिन मैन पॉवर की नियुक्ति की दिशा में गंभीरता नहीं बरती जाती. यही वजह है कि कॉलेज खुलने के बाद वर्षों तक पद भर्ती की प्रतीक्षा करना पड़ता है. पद भर्ती नहीं होने से एक ओर जहां स्नातकोत्तर की सीटों को मंजूरी नहीं मिलती तो दूसरी ओर मरीजों को भी लाभ नहीं मिल पाता. युति सरकार के बाद मविआ सरकार ने भी मेडिकल कॉलेजों में प्राध्यापकों की भर्ती पर गंभीरता नहीं दिखाई थी.