Mayo and Medical, GMCH

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    नागपुर. कोरोना काल में एक ओर जहां ऑक्सीजन की कमी बनी हुई थी तो दूसरी ओर ऑक्सीजन लीकेज की समस्या भी बनी हुई थी. ऑक्सीजन लीकेज रोकने के लिए मेयो ने व्यवस्था की. प्रशासन की ओर से उपकरण लगाया गया. लीकेज की जगह का पता लगाया गया लेकिन मेडिकल में 6 महीने के भीतर दो बार लीकेज की घटना होने के बाद भी व्यवस्था नहीं की गई. 

    मेयो में एनेस्थीसिया विभाग प्रमुख डॉ. वैशाली शेलगावकर के मार्गदर्शन में ऑक्सीजन लीकेज रोकने का प्रकल्प तैयार किया गया. जिला नियोजन समिति से मिली विशेष निधि से प्रकल्प तैयार किया गया. इसके लिए जर्मनी से उपकरण मंगाया गया. उपकरण द्वारा लीकेज का पता लगाया गया. उपकरण लगाने के बाद 12 जगह से लीकेज का पता चला. इसके विपरीत मेडिकल में १५ जनवरी को वॉर्ड क्रमांक-१ में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो गई. इससे मरीजों को परेशानी भी हुई. अच्छा यह हुआ कि तुरंत नर्सों ने ध्यान दिया और स्थिति को संभाल लिया. इसके बाद दूसरी घटना ११ जुलाई को हुई. किडनी डायलिसिस यूनिट में ऑक्सीजन पाइप लाइन का वाल्व बंद करते समय ‘की’ टूट गई और लीकेज होने लगा. 

    2 बार की घटना के बाद भी सबक नहीं

    लीकेज होने से किडनी डायलिसिस वाले मरीजों को लिफ्ट द्वारा दूसरे वार्ड में शिफ्ट करना पड़ा. यदि देरी हो जाती तो स्थिति बिगड़ सकती थी. इसके बावजूद मेडिकल प्रशासन लीकेज दुरुस्ती के मामले में उदासीन बना हुआ है. मेडिकल के ट्रॉमा सेंटर परिसर में 3२०० एलपीएम, शासकीय दंत महाविद्यालय के पास 3२०० एलपीएम का १ और  2000 एलपीएम का १ सहित 3 ऑक्सीजन प्लांट हैं. इसके अलावा वॉर्ड क्रमांक-२४ के बाजू में भी एक ऑक्सीजन प्लांट शुरू किया गया है. वॉर्ड सहित ओटी व अन्य भागों में पाइप लाइन लाइन द्वारा ऑक्सीजन आपूर्ति की जाती है. भविष्य में लीकेज जैसी घटना से बचने के लिए मेयो की तरह ही उपाय योजना की सख्त आवश्यकता है.