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नागपुर. पूरे राज्य में जंगल और जंगली जीवों के संरक्षण के प्रयास जारी है. वन विभाग के प्रयासों की वजह से ही राज्य में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई. दूसरी ओर नजर डालें तो लापरवाही भी हो रही है जिसके चलते राज्य में बीते 10 महीनों में 40 बाघों की मौत हुई है. इनमें 1 महीने के शावकों से लेकर वयस्क बाघ और बाघिन भी शामिल हैं. ऐसे में तो यही लगता है कि वन्यजीवों के संरक्षण की बातें हवा हवाई हैं.

बढ़ते मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करना दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है. सिटी से लगकर बड़े पैमाने पर जंगल क्षेत्र है. इनमें पेंच टाइगर रिजर्व, ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व, उमरेड व पवनी करहंडला वन्यजीव अभ्यारण्य आदि शामिल हैं. इस कारण वन्यजीवों की संख्या अधिक है. ऐसे में घटते जंगल क्षेत्र के चलते जंगली जानवर बस्तियों तक पहुंच जाते हैं. इस कारण वन्यजीवों से पशु एवं फसलों को बचाने के लिए गांव वासियों द्वारा किए गए इलेक्ट्रोक्यूशन की चपेट में आने से जंगली जानवरों की मौत हो जाती है. अवैध शिकारी भी अपना काम बखूबी निभाते हैं. हादसों में वन्यजीवों की मौत के मामले भी देखने को मिलते हैं. 

शिकारियों के हौसले हो रहे बुलंद

बहती गंगा में हाथ धोने के लिए शिकारी भी मौके की फिराक में रहते हैं. बाघों का शिकार कर उसके अंगों को काटकर बेच दिया जाता है. नागपुर समेत पूरे राज्य में अवैध शिकारियों पर नकेल कसना अधिक आवश्यक हो गया है. हाल ही में  बिजली के जीवित तार का स्पर्श कर बाघ का शिकार करने की घटना गड़चिरोली के चातगाव वन परिक्षेत्र के अमिर्झा बीट में हुई. घटनास्थल पर मिले मृत बाघ का सिर और पंजे गायब थे.

गश्त बढ़ाने की आवश्यकता

वन विभाग के कर्मी जंगल क्षेत्र में गश्त लगाते रहते हैं लेकिन नियमित रूप से गश्त की कमी के कारण शिकारी मौके का फायदा उठाकर जंगल क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं और वन्यजीवों का शिकार कर लेते हैं.