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नागपुर. मनपा चुनाव अनिश्चितकाल के लिए टल गया है. अब पहले लोकसभा चुनाव होंगे और उसके बाद राज्य में विधानसभा चुनाव. इसके बाद ही मनपा चुनाव का नंबर लग पाएगा. उस पर भी प्रभाग रचना और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा जो अदालत में है उसके फैसले पर निर्भर करेगा कि चुनाव कब होंगे. मनपा चुनाव की अनिश्चितता के चलते पूर्व नगरसेवकों व चुनाव लड़ने के इच्छुक सभी पार्टी के कार्यकर्ताओं में उदासीनता नजर आ रही है. वैसे भी सभी को लोकसभा चुनाव के कामकाज पर लगा दिया गया है. भाजपा ने कार्यकर्ताओं को जहां अपने कई तरह के अभियानों पर लगा रखा है तो कांग्रेस, राकां व शिवसेना ने जनसंपर्क बढ़ाने व संगठन को मजबूत करने के लिए कार्य करने को कहा है. जमीन से जुड़े ऐसे कार्यकर्ताओं के लिए स्थानीय निकाय चुनाव ही होते हैं जिसके जरिये वे नगरसेवक बनकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं. यही उनके राजनीतिक भविष्य की पहली सीढ़ी होती है और उस सीढ़ी का रास्ता ही लंबे अरसे से बंद पड़ा हुआ है.

20 महीनों से प्रशासक राज

4 मार्च 2022 को मनपा में मेयर राज की अवधि समाप्त हुई थी. उस समय कहा जा रहा था कि अप्रैल में चुनाव हो जाएंगे. चुनाव लड़ने के इच्छुक काम पर जुट गए थे लेकिन फिर प्रभाग रचना को लेकर मामला अदालत में चला गया. वहीं ओबीसी आरक्षण का मामला भी अदालत पहुंचा. चुनाव लटक गया और राज्य सरकार ने प्रशासक बिठा दिया. आज 20 महीनों से नागपुर मनपा में प्रशासक राज है. बीच-बीच में आला नेताओं द्वारा मनपा चुनाव के संकेत दिये जाते रहे. जब भी ऐसे संकेत मिलते पूर्व नगरसेवक व पार्टी कार्यकर्ता सक्रिय हो जाते लेकिन फिर मामला टल जाता और चुनाव लड़ने के इच्छुकों में निराशा छा जाती. अब तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन अब तो चुनाव लड़ने के इच्छुकों के बीच इसकी चर्चा तक बंद हो गई है. 15 वर्षों से मनपा की सत्ता में रही भाजपा जैसी पार्टी के पूर्व नगरसेवक तक इस बारे में किसी तरह की चर्चा नहीं करते. उनका कहना है जब होगा तब देखा जाएगा. 

फरवरी 2025 के बाद संभावना

ऐसा दावा किया जा रहा है कि मनपा चुनाव फरवरी 2025 के बाद ही होंगे. मनपा में विपक्षी पार्टी रही कांग्रेस तो यह आरोप तक लगाती रही है कि भाजपा हार के भय से मनपा चुनाव टालती रही है. प्रशासक राज में पूर्व नगरसेवकों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है. सीधे राज्य सरकार के निर्देश पर ही अधिकारी कार्य कर रहे हैं. उनका कोई संपर्क या संवाद स्थानीय प्रभाग स्तर के जनप्रतिनिधियों से नहीं होने से जनता की समस्याओं पर सुनवाई नहीं हो रही है. सुनवाई नहीं होने के चलते पूर्व नगरसेवक भी सुस्त बैठ गए हैं. कुछ नेता तो कह रहे हैं कि स्थानीय स्तर पर तैयार होने वाली जनप्रतिनिधियों की भावी युवा पीढ़ी की जमीन छीन ली गई है जिनकी ट्रेनिंग मनपा के जरिए हुआ करती है.