Nagpur High Court
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  • जांच पूरी करने पूर्व न्या. हक समिति ने मांगा समय

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नागपुर. प्रन्यास द्वारा डीपी प्लान में सार्वजनिक उपयोग के तहत विभिन्न कार्यों के लिए आरक्षित जमीन को न केवल लीज पर आवंटित कर दिया गया बल्कि गैरकानूनी ढंग से किए गए कार्यों पर पर्दा डालने के लिए आरक्षण रद्द करने का प्रस्ताव भी राज्य सरकार को भेज दिया गया. मामले में भ्रष्टाचार की बू आने के बाद हाई कोर्ट की ओर से इसे गंभीरता से लिया गया. इसके बाद सम्पूर्ण मामले की जांच के लिए पूर्व न्या. झका हक की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया.

हाई कोर्ट के आदेशों के अनुसार समिति ने जांच की पहली रिपोर्ट तो अदालत में पेश की लेकिन जांच पूरी करने के लिए कुछ समय और देने का अनुरोध भी किया. सुनवाई के बाद न्यायाधीश अतुल चांदूरकर और न्यायाधीश उर्मिला जोशी ने समिति द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट रजिस्ट्रार (ज्यूडिशियल) को बंद लिफाफे में रखने के आदेश दिए. 

सभी दस्तावेज प्रस्तुत करने के आदेश

अदालत का मानना था कि आरक्षण रद्द करने के लिए प्रन्यास ने 21 अक्टूबर 2015 को ही राज्य सरकार को प्रस्ताव भेज दिया था. नियमितीकरण के अंतर्गत किए गए अवैध कार्यों को वैध करने इस तरह का कारनामा किया गया. नागपुर शहर की जनता के हितों के लिए इस तरह की कार्यप्रणाली किए जाने का दिखावा किया गया. प्लानिंग अथॉरिटी और उसके अधिकारियों द्वारा किए गए गैरकानूनी कारनामे की जांच के आदेश देने से पूर्व पूरे मामले के रिकार्ड अदालत के समक्ष होने जरूरी हैं जिससे प्लॉट की हुई नीलामी, लीज प्लॉट के विकास के लिए दी गई मंजूरी, एमएन-36 और एमएन-37 प्लॉट को लेकर डीपी आरक्षण के सभी दस्तावेज प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे. 

प्रन्यास ने लीज दी, मनपा ने विकास की मंजूरी

हाई कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश में कहा गया कि प्राथमिक स्कूल और खेल मैदान के लिए आरक्षित जमीन प्रन्यास ने आरक्षण रद्द करने से पहले लीज पर प्रदान की. यहां तक कि मनपा ने भी आरक्षण रद्द न कर इस पर विकास के लिए मंजूरी प्रदान की जिससे धांधली में लिप्त अधिकारियों का खुलासा करने के लिए तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मामले की जांच जरूरी है. उल्लेखनीय है कि प्रन्यास द्वारा  लेआउट को तो मंजूरी प्रदान कर दी गई लेकिन अब उसी लेआउट में खरीदे गए प्लॉट को मंजूरी नहीं मिल रही है. प्लॉट को खेल मैदान और प्राइमरी स्कूल के लिए आरक्षित जगह बताया जा रहा है. इसे लेकर जगजीत सिंह शार्दुल सिंह सड्डल एवं अन्य की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर थी जिसे बाद में जनहित याचिका के रूप में स्वीकृत किया गया.