नागपुर. विलीनीकरण की मांग को लेकर जारी एसटी कर्मियों की हड़ताल को करीब 40 दिन होने के बाद भी कोई रास्ता नहीं निकल पाया है. वहीं जनता परेशान हो रही है लेकिन सरकार है कि हाथ पर हाथ धरे बैठी है. कर्मचारियों के काम पर लौटने की राह देखी जा रही है. आखिर सरकार द्वारा आम जनता के बारे में विचार क्यों नहीं किया जा रहा है यह सवाल अब प्रवासी करने लगे हैं.
एसटी के इतिहास में यह पहला अवसर है जब इतनी लंबी हड़ताल की जा रही है. बसें बंद होने से ग्रामीण भागों में परिवहन व्यवस्था चरमरा गई है. अब भी छात्र स्कूल-कॉलेज नहीं जा पा रहे हैं. कोरोना की वजह से पहले ही शैक्षणिक नुकसान हो चुका है. अब स्कूल शुरू होते ही एसटी बंद होने से कई छात्रों की पढ़ाई बाधित हो गई है.
नागरिकों का कहना है कि जब तक हड़ताल शुरू है तब तक पर्यायी व्यवस्था की जानी चाहिए. सरकार की जिम्मेदारी है. इस तरह अपने दायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकती. सरकार की ओर से निलंबन, ट्रांसफर जैसे आयुध इस्तेमाल किये गये लेकिन कर्मचारियों पर इसका भी कोई असर नहीं हुआ. अब तो लग रहा है कि जब तक कर्मचारी काम पर नहीं आते उनकी प्रतीक्षा ही की जाती रहेगी.
सड़कों पर दौड़ीं 11 बसें
इस बीच बुधवार को केवल 11 बसें ही दौड़ी. गणेशपेठ, घाट रोड, इमामवाड़ा, उमरेड डिपो से दिनभर में 36 फेरियां हुई. वहीं केवल 30 कर्मचारी ही काम पर लौटे. हालांकि महाराष्ट्र राज्य कनिष्ठ वेतन श्रेणी एसटी कामगार संगठन की ओर से हड़ताल समाप्त करने की घोषणा की गई लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.
गणेशपेठ, इमामवाड़ा, घाट रोड में वाहक, चालक, यांत्रिकी कर्मचारियों का आंदोलन जारी है. डिपो प्रमुख निलेश बेलसरे की ओर से कर्मचारियों के काम पर लौटने की अपील की जा रही है लेकिन कर्मचारी मानने को तैयार नहीं है. बुधवार को नागपुर डिपो से 11 बसें निकलीं. इनमें 1,533 प्रवासियों ने प्रवास किया. दिनभर में 1,867 किमी की दूरी तय की गई. इससे महामंडल को 88,065 रुपये की आमदनी हुई.