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    पिंपरी: जागरूकता अभियान (Awareness Campaign) के बावजूद भारत में नेत्रदान करने वालों की संख्या बेहद कम है। सिर्फ नेत्रदान (Eye Donation) ही नहीं, बल्कि हर प्रकार के अंगदान को लेकर लोगों के मन में कई प्रकार के भ्रम और भ्रांतिया फैली हुई है। जागरूकता का अभाव कहा जाए, या अस्पतालों और संस्थानों में अभी भी अपर्याप्त सुविधाएं या फिर नेत्रदान को लेकर लोगों की संकीर्ण सोच और उस पर पुराणपंथी मान्यताएं, लोग नेत्रदान के बारे में बात तो करते हैं, लेकिन स्वयं नेत्रदान की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। 

    शायद यही वजह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद परोक्ष नेत्रदान का आंकड़ा नहीं बढ़ पा रहा है। उसी में दो साल के कोरोना काल मे नेत्रदान आंदोलन पूरी तरह से ठंडा पड़ा रहा।

    2010 में शुरू हुआ पहला आई बैंक

    अगर बात करें पिंपरी-चिंचवड जैसी उद्योगनगरी की तो पिछले 12 सालों में शहर में केवल 820 लोगों ने ही दूसरों की जिंदगी रोशन करने का नेक काम किया है, जबकि नेत्रदान के महत्व, उसकी जरूरत को ध्यान में लेकर नवंबर 2010 में पिंपरी-चिंचवड महानगरपालिका और थेरगांव क आदित्य बिड़ला मेमोरियल हॉस्पिटल के संयुक्त तत्वावधान में शहर का पहला आई बैंक शुरू किया गया है। नेत्रदान को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए लगातार भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें सरकार से लेकर प्रशासन और अस्पतालों से लेकर निजी स्वयंसेवी संस्था और संगठन तक सभी जुड़े हुए हैं। इसके बावजूद नेत्रदान को लेकर उदासीनता दूर नहीं हो पा रही है। पिछले 12 सालों में करीबन 25 लाख की आबादी वाले इस शहर में मृत्यु के बाद नेत्रदान करनेवालों का आंकड़ा एक हजार भी नहीं छू सका है।

    परोक्ष आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर

    प्रारंभ में नेत्रदान प्रक्रिया में भाग लेने के लिए कई जन जागरूकता अभियान चलाए गए। विभिन्न माध्यमों से नागरिकों को नेत्रदान के महत्व से अवगत कराया गया। नेत्र संग्रह प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही थी क्योंकि नागरिकों ने इसमें योगदान दिया, लेकिन पिछले दो साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह बात सामने आती है कि नेत्रदान की प्रक्रिया ठंडी पड़ गई है। सिर्फ नेत्रदान संबन्धी आवेदन भरने के लिए कई नागरिक आगे आ रहे हैं। हालांकि, वास्तविकता यह है कि परोक्ष नेत्रदान नहीं हो पा रहा है। 

    केवल 820 परिवारों ने ही नेत्रदान किया

    शहर के आई बैंक में पिछले 12 वर्षों में सतर्क नागरिकों के केवल 820 परिवारों ने ही नेत्रदान किया है। चूंकि शहर में होने वाली मौतों और उसके बाद के नेत्रदान के आंकड़ों में भारी अंतर है, इसलिए प्रशासन, शहर के अस्पतालों, सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं के लिए इसे गंभीरता से लेना जरूरी है। नागरिकों में जागरूकता लाकर नेत्रदान के बारे में भ्रांतियों को दूर करना महत्वपूर्ण है।

    गणेश मंडल बने जरिया

    इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए पुणे जिले समेत समस्त प्रदेश में नेत्रदान आंदोलन चलाने वाली प्रेरणा एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड ने सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों से मदद की गुहार लगाई है, जो इस साल कोविड के बाद बड़ी धूमधाम से मना रहे हैं। इसके अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने जागरूकता फैलाने वाले अपने-अपने बैनर बनाकर सभी गणेश मंडलों को दे दिए हैं। वहीं कुछ मंडलों ने ऐसे बैनर खुद बनाकर लगाए हैं। खासकर चिंचवडगांव, उद्योगनगर, आनंदनगर, पिंपरी-चिंचवड लिंक रोड, पिंपरी संत तुकाराम नगर, नेहरू नगर, साठे पिंपले, पिंपले निलख जैसे इलाकों में गणेशोत्सव के 10 दिन नेत्रदान को लेकर जनजागृति की जा रही है। 

    महानगरपालिका स्तर से भी जागरूकता

    इस बारे में प्रेरणा एसोसिएशन फ़ॉर द ब्लाइंड के पराग कुंकुलोल कहते हैं कि नेत्रदान करने के लिए फॉर्म भरना जरूरी नहीं है। नेत्रदान तब भी किया जा सकता है जब दाता का परिवार उसकी मृत्यु के बाद यह इच्छा जताए। जो लोग मृत्यु के बाद नेत्रदान करना चाहते हैं, उन्हें अपने परिवार को एक विचार देने की जरूरत है। महानगरपालिका के अतिरिक्त स्वास्थ्य और चिकित्सा अधिकारी डॉ. पवन सालवे ने कहा कि प्रेरणा एसोसिएशन और जनप्रतिनिधियों की पहल पर जन-गणेश मंडलों द्वारा नेत्रदान आंदोलन के प्रति जागरूकता पैदा करने का लिया गया निर्णय काबिले तारीफ है। इसके लिए महानगरपालिका स्तर पर हर संभव मदद की जाएगी। वर्तमान में नेत्रदानदाताओं और जरूरतमंदों के बीच बहुत बड़ा अंतर है, इसलिए नागरिकों को नेत्रदान और अंगदान के लिए आगे आने की जरूरत है।