
चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 महामारी (COVID-19 Pandemic) के चलते लागू लॉकडाउन (Lockdown) का इस्तेमाल कर्ज की शेष रकम चुकाने से बचने के लिए हर अवसर पर ‘जादू की छड़ी ‘ के रूप में नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की प्रथम पीठ ने शोलिंगनल्लूर में एक फ्लैट की नीलामी में बोली लगाने वाली कायलविझी की जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणी की।
यह नीलामी एक्सिस बैंक की कोडमबक्कम शाखा ने प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों व प्रतिभूति हित (सरफेसी) अधिनियम के तहत की थी। गौरतलब है कि कायलविझी ने शुरूआती भुगतान किया था, लेकिन वह महामारी के चलते शेष रकम अदा नहीं कर सकी। उन्होंने अदालत से बैंक को और अधिक वक्त देने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया। पीठ ने कहा कि कई मौकों पर अदालतों ने माना है कि समय विस्तारित करने का उनके पास असाधारण प्राधिकार है।
कई बार एक तरह से क्षमा करने के क्षेत्राधिकार का भी सहारा लिया गया है लेकिन यह उन अन्य लोगों के लिए पक्षपातपूर्ण हो सकता है, जो अदालत नहीं आ सके हैं। साथ ही, महज अदालत का रुख करने वाले किसी व्यक्ति को यह अनुचित फायदा पहुंचाने वाला कदम भी हो सकता है।
पीठ ने कहा कि यदि कानून यह कहता है कि याचिकाकर्ता को नीलामी की तारीख से 90 दिनों के अंदर पूरी रकम अदा करनी होगी, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति नहीं हो, अदालत को भुगतान के लिए समय विस्तार करने में तत्परता नहीं दिखानी चाहिये क्योंकि यह एक पक्ष को फायदा पहुंचाने के समान होगा।
अदालत ने कहा कि यह सच है कि महामारी और इसके मद्देनजर लागू लॉकडाउन एक असाधारण परिस्थिति हो सकती है, लेकिन यह अब असाधारण नहीं है क्योंकि इसे अब करीब 12 या 14 महीने हो गये हैं। पीठ ने कहा कि लॉकडाउन को कर्ज की शेष रकम नहीं चुकाने वाले हर व्यक्ति द्वारा जादू की छड़ी के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। (एजेंसी)