26 countries appeal for removal of sanctions from US, Western countries to tackle Covid-19

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वणी. कोरोना विषाणू संक्रमन की रोकथाम के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने सतर्क होकर कडी उपाययोजनाएं की. लॉकडाउन का विकल्प अपनाने के बाद कोरोना की श्रृखंला खंडीत करने का प्रयास किया गया. लेकिन तीन माह के लॉकडाउन से नागरिक त्रस्त हुई है. इस दौरान नागरिकों की परेशानी की ओर अनदेखी करनेवाले राजनैतिक दल के नेता भी लॉकडाउन दिखाई दिए. अब नागरिकों का नेताओं के प्रती गुस्सा देख नेतागण स्वयं का बीचबचाव करते नजर आ रहे है. बीजेपी के विधायक तथा कार्यकर्ता कलपरसो रास्ते पर आए थे.

किसानों की समस्याओं से वे अवगत होने का बता रहे है. तत्कालीन सीएम द्वारा चलाए गए उपक्रम की जानकारी वे दे रहे है. हर कोई कोरोना के संकट को आगे कर खुद का बचाव नेतागण कर रहे है. लेकिन गत तीन माह में उन्होने क्या दिए लगाए यह वणी विधानसभा की जनता के सामने रखने की उम्मीद है. अब इन नेताओं को किसानों की चिंता सता रही है. तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में  जबरन फसलकर्ज खाते रिन्यु किए, वे  पिडीत किसान इस सरकार द्वारा घोषीत की कर्जमाफी के लिए पात्र नही ठहरे है, इसके लिए जिम्मेदार कौन? ऐसा प्रश्न निर्माण हुआ है. कोरोना संकटकाल में वणी विधानसभा क्षेत्र के चुनिंदा राजनैतिक दल सही मायने में आम जनता की समस्याए दुर करते नजर आए. इसमें प्रमुखता से नगराध्यक्ष तारेंद्र बोर्डे और मनसे के  राज्य उपाध्यक्ष राजू उंबरकर का समावेश है. तो सामाजिक संगठनों के माध्यम से पुर्व नगराध्यक्ष राकेश खुराना और उनके सहयोगीयों ने गत तीन माह में अथक परिश्रम लेकर वणीवासीयों की सहायता की. लेकिन भाजप, शिवसेना, कांग्र्रेस, राष्ट्रवादी पार्टी के प्रमुख पदाधिकारी घर में ही लाकडाउन थे यह सब को पता है. कोरोना संकट में विधायक संजीवरेडडी बोदकुरवार गत दो माह में चुनाव क्षेत्र में नही आए. लेकिन उन्होने गरिबों के भोजन की व्यवस्था की थी.     

राज्य में  कोरोना ने प्रवेश करने के बाद  22 मार्च से लॉकडाउन घोषित किया. संपुर्ण व्यवहार ठप हुए. छोटे उद्योग डूब गए. चाय टपरी, पान पटरी चलानेवालों की हालत काफी खराब है. संकट चरमसीमा पर भी नेतागण घर में ही लॉकडाउन है, यह जनता नही भुल पाएगी. विधायक, सांसद, पार्षद, जिला परिषद सदस्य और जनप्रतिनिधी  नदारद थे. अब इन नेताओं के आसू नागरिकों को ”मगरमच्छ के आसू” दिख रहे है.