बढ़ती वाहन दुर्घटनाएं

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सचमुच चिंताजनक है कि विश्व की तुलना में भारत में सड़क दुर्घनाओं (Road accidents)से होने वाली मौत की संख्या लगभग 10 गुनी है. कोरोना संकट(Coronavirus) की वजह से जब देश में लॉकडाउन लागू हुआ और यातायात ठप था तब दुर्घटनाओं में कमी आई. मृतकों और घायलों की तादाद भी कम हुई थी परंतु अनलॉक के बाद जुलाई से सितंबर की तिमाही में सड़क दुर्घटना में मृत लोगों की संख्या 60 प्रतिशत बढ़ गई. सड़क सुरक्षा समिति ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) को जो आंकड़े सौंपे, उससे यह बात सामने आई. इस तिमाही में 87,000 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 33,000 लोगों की मौत हुई.

इसके पहले गत वर्ष इसी तिमाही में दुर्घटनाओं की संख्या 57,700 तथा जान गंवाने वालों की तादाद 20,700 थी. मिशन ‘बिगेन अगेन’ (Mission Begin Again) के बाद वाहन चालकों की बेफिक्री बढ़ी. दुर्घटनाओं से सर्वाधिक मौत दुपहिया वाहन चालकों की हुई. उनमें 14 से 35 वर्ष आयुवर्ग के लोग शामिल थे. यह देश की युवा शक्ति का नुकसान है. हेलमेट नहीं लगाने वाले दुपहिया चालकों को दुर्घटनाओं मे जान से हाथ धोना पड़ा. इसके अलावा ऊबड़-खाबड़ खराब सड़कें व गड्ढे भी दुर्घटना की प्रमुख वजह रहे. जिसके लिए पूरी तरह से सरकार व प्रशासन को जिम्मेदार माना जाना चाहिए. ट्रक चालकों की लापरवाही तथा सड़कों पर भारी वाहनों का अनियंत्रित यातायात भी दुर्घटनाओं की बड़ी वजह रहा.

ओवरलोड ट्रकों से भी ज्यादातर दुर्घटनाएं हुईं. विदेश में कारचालक के साथ ही सभी सवार व्यक्तियों को सीटबेल्ट लगाना अनिवार्य है परंतु यहां केवल चालक ही सीट बेल्ट लगाता है और बाकी लोग ऐसा नहीं करते हुए असुरक्षित रहते हैं. जल्दबाजी में ओवरटेक करने से भी दुर्घटनाएं होती हैं. यदि यातायात नियमों का पूरी तरह पालन किया जाए तो सड़क हादसों की तादाद घटाई जा सकती है. सरकार व यातायात पुलिस दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक उपाय योजना कर सकती है. नशे की हालत में वाहन चलाना तथा गाड़ी की तेज गति जानलेवा साबित होते हैं.