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कोरोना महामारी(Coronavirus) ने दुनिया भर में स्कूलों (School)को बंद कर दिया है. अकेले भारत में इसने 29 करोड़ बच्चों की शिक्षा(Education) को प्रभावित किया है. पहले से ही 60 लाख बच्चे स्कूल से बाहर थे. आर्थिक तबाही बढ़ने के चलते बच्चों की पढ़ाई छोड़ने से यह संख्या और बढ़ सकती है. ब्रुकिंग्स के एक अध्ययन के मुताबिक, 10 करोड़ से ज्यादा लोग अत्यंत गरीबी की अवस्था में पहुंच गए हैं और उनमें से एक बड़ा हिस्सा भारत में है. भारत की जीडीपी चालू वर्ष में 10 फीसदी से ज्यादा घटने की आशंका है. इस कारण शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की नौकरियां जाएंगी और बेरोजगारी बढ़ेगी.

कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वेतन कम देने का फैसला किया है. आर्थिक गतिविधियों की इस तीव्र कमी ने बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. स्कूलों में नए बच्चों के दाखिला पर महामारी का तत्काल प्रभाव पड़ा है. एक सर्वेक्षण से पता चला है कि कई छोटे बच्चों ने स्कूलों में दाखिला नहीं करवाया है. 6 से 10 आयुवर्ग के स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों के आंकड़ों में तेज उछाल देखा गया है.

2018 में यह आंकड़ा 1.8 फीसदी था, जो 2020 में बढ़कर 5.3 फीसदी हो गया है. और 16 साल तक के सभी बच्चों में 4 से 5.5 फीसदी बच्चे स्कूल से बाहर हैं. कुछ हद तक इसका कारण यह भी है कि कोविड के चलते नामांकन प्रक्रिया अब भी पूरी नहीं हुई है. 38.2 प्रतिशत बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है. निम्न आय वर्ग के बच्चों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है. संभवत: माता-पिता ने वायरस के डर से या पढ़ाई का खर्च वहन करने की असमर्थता के चलते अपने बच्चों को घर पर रखने का फैसला किया हो. नौकरियां जाने और वेतन कटौती के चलते परिवारों की आर्थिक असुरक्षा ने वैश्विक स्तर पर बच्चों को मुसीबत में डाल दिया है.