कोविड संकट फिर बढ़ाएगा बैंकों का NPA, लॉकडाउन-2 लंबा खिंचा तो 16% तक पहुंचेगा सकल एनपीए

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    मुंबई. चाइनीज वायरस कोविड-19 (Covid-19) संकट की दूसरी लहर ने आम आदमी और उद्योग-व्यापार जगत के साथ बैंकों (Banks) और वित्तीय कंपनियों (NBFC) की चिंता भी बढ़ा दी है। 

    यदि लॉकडाउन-2 (Lockdown) लंबा खिंचता है तो फिर से बड़ी संख्या में कर्जधारक डिफाल्ट होंगे, जिससे बैंकों के एनपीए (NPA) स्तर में भारी वृद्धि होगी और बैंकिंग उद्योग का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) अनुपात सितंबर 2021 तक 16% के चिंताजनक स्तर पर पहुंच सकता है, जो सितंबर 2020 में कुल कर्जों का 7.5% था। यह विगत दो दशकों का सबसे उच्च स्तर होगा। एनपीए बढ़ने से बैंकों की आय और मुनाफे पर बुरा असर होगा और कई सरकारी बैंक तो फिर घाटे में आ सकते हैं।

    कमाई होती ठप, कैसे चुकाएं किस्त

    विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड की दूसरी लहर जहां कहर बनकर लोगों की जान ले रही है और वहीं उनकी कमाई भी घटा रही है। इसका सबसे ज्यादा असर उन नौकरीपेशा लोगों और छोटे कारोबारियों पर हो रहा है, जिनके ऊपर बैंक का कर्ज है। अब कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए लगाए जा रहे सख्त प्रतिबंधों से उनकी आय कम हो रही है। महाराष्ट्र में तो फुल लॉकडाउन लगा दिया गया है और यदि लॉकडाउन-2 लंबा खिंचता हैं तो कमाई ठप हो जाएगी। तब बैंक के कर्ज की किस्त कोई कैसे चुकाएगा। यहीं चिंता नौकरीपेशा लोगों और छोटे कारोबारियों को सताने लगी है।

    10% तक लोन पेमेंट में आई गिरावट     

    बैंकरों का कहना है कि कोविड महामारी पर काबू पाने के लिए लगाए गए सख्त प्रतिबंधों का विपरीत असर दिखने भी लगा है। अप्रैल के पहले पखवाड़े में बैंकों और वित्तीय कंपनियों की लोन किस्त वसूली में 5 से 10% तक की गिरावट दर्ज हुई है। लोन किस्तों का सबसे कम भुगतान यानी डिफाल्ट कमर्शियल व्हीकल्स लोन (CV Loans), माइक्रो फाइनेंस लोन (Micro Finance), पर्सलन लोन (Personal Loans) और एमएसएमई लोन (MSME Loans) में देखा जा रहा है क्योंकि सख्त प्रतिबंधों का असर छोटे कारोबारियों, ट्रांसपोर्टर और नौकरीपेशा वर्ग पर पड़ रहा है। बैंकरों का कहना है कि अब पूर्ण लॉकडाउन लगने के कारण मई माह में किस्त वसूली में भारी गिरावट आ सकती है।  

    पर्सलन, ऑटो, एजुकेशन लोन पर ज्यादा असर

    बैंकरों का कहना है कि लॉकडाउन-2 का सबसे बुरा असर पर्सलन लोन, ऑटो लोन (Auto) और एजुकेशन (Education) लोन सेगमेंट पर पड़ेगा। बिजनेस लोन (Business Loan) और होम (Home) लोन भी कुछ प्रभावित होंगे। क्योंकि लोगों की कमाई ठप हो रही है। रोजगार के अभाव में बहुत से लोग पलायन कर रहे हैं। ऐसे में लोग पहले अपने होम लोन या बिजनेस लोन की किस्त तो कैसे भी चुकाने की कोशिश करते हैं। कर्जधारक अपने होम या बिजनेस लोन की ईएमआई तो इसलिए देना चाहेगा कि उसे डर होता है कि यदि पेमेंट नहीं दिया तो घर या प्रॉपर्टी जब्त हो सकती है, लेकिन पर्सलन लोन और ऑटो लोन के किस्त भुगतान को वह अंतिम प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि इन लोन पर प्रॉपर्टी मोर्गेज नहीं होती है।

    मई-जून में भारी डिफाल्ट होने की आशंका

    लॉकडाउन लंबा खिंचने पर निश्चित ही डिफाल्ट ज्यादा होंगे। अप्रैल में तो अधिकांश ईएमआई आ चुकी है, लेकिन अब लोगों की कमाई ठप होने से मई और जून में बड़ी संख्या में लोन पेमेंट में डिफाल्ट होने की आशंका है। जिसका असर बैंकों की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर 2021) की बैलेंस शीट पर पड़ेगा। क्योंकि रिजर्व बैंक के नियमानुसार, ईएमआई नहीं आने पर 90 दिन के बाद लोन खाता ‘एनपीए’ में तब्दील किया जाता है। इसलिए जो लोन खाते अप्रैल-मई-जून में डिफाल्ट होंगे, वे अगली तिमाही में एनपीए माने जाएंगे। इसी कारण सकल एनपीए स्तर सितंबर तिमाही में सबसे ज्यादा यानी 16% होने की आंशका जताई जा रही है।