कृष्णावतार युग से जुड़ा है ‘जितिया व्रत’ का संबंध, जानें पौराणिक कथा

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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली : हर साल आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ‘जीवित्पुत्रिका’ का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 28 सितंबर यानी मंगलवार से 30 सितंबर अगले गुरुवार तक मनाया जाएगा। ‘जीवित्पुत्रिका’ यानी ‘जितिया’ का त्योहार महिलाएं बहुत ही भक्तिभाव से साथ मनाती हैं। यह व्रत बहुत ही कठिन उपवासों में एक माना जाता है। इसमें माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।

    मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की लंबी उम्र होती है। ये व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस व्रत की शुरुआत कहां से हुई है ? आइए जानें इस व्रत के पौराणिक कथा के बारे में –

    पौराणिक कथा

    ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ का संबंध महाभारत काल से है। दरअसल महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु से बहुत क्रोधित थे और हर हाल में पांडवों से बदला लेना चाहते थे। इसलिए वे पांडवों के शिविर में घुस गए और उसमें सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रौपदी की संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा की मणि छीन ली और क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला।

    भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनर्जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को ‘जीवित्पुत्रिका’ नाम दिया गया। तभी से महिलाएं संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल ‘जितिया’ का व्रत रखती हैं।

    ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ का महत्व

    ‘जीवित्पुत्रिका’ या ‘जितिया’ का व्रत हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाली महिलाएं संतान की मंगल कामना के लिए करती हैं। मान्यता है कि यह व्रत बच्‍चों की लंबी उम्र और उनकी रक्षा के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत की कथा सुनने वाली महिलाओं को भी कभी संतान वियोग नहीं सहना पड़ता है। साथ ही घर में सुख-शांति बनी रहती है।