लौट आया पुराना दौर कश्मीर घाटी में फिर गैर मुस्लिमों पर हमले

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    बड़ा ही खौफनाक था 1990 का वह दौर जब कश्मीर घाटी में हिंदुओं कश्मीरी पंडितों की हत्याएं और उनके परिवार को वहां से खदेड़ने की घटनाएं हुईं. लाखों कश्मीरी पंडित अपनी जमीन-जायदाद, मकान छोड़कर भागने पर मजबूर हुए थे. जिनकी हत्या हुईं उनमें हिंदू समुदाय के नेता, शिक्षा शास्त्री, रेडियो अनाउंसर आदि भी शामिल थे. वहां आतंकवादी और पाकिस्तान समर्थक लाउडस्पीकर पर घोषणा करते थे कि जितने मर्द हो यहां से चले जाओ और खवालीन (महिलाओं) को यही छोड़ जाओ. 

    ऐसे समय केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया. मानवाधिकार संगठनों ने भी अनदेखी की और हिंदू परिवार सब कुछ खोकर जम्मू और दिल्ली के शरणार्थीं शिविरो में रहने को बाध्य हुए. वह घाटी से हिंदुओं को भगाकर केवल मुस्लिमों को रखने की सोची समझी साजिश थी. इस प्रकरण के 3 दशक बाद जब केंद्र की मोदी सरकार ने संविधान का अनुच्छेद 370 व 35 (1) हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया और विस्थापित हिंदुओं को वापस कश्मीर घाटी में बसाने की दिशा में कदम उठाए तो फिर आतंकियों ने हत्या का दौर शुरु कर दिया.

    एक बुजुर्ग हिंदू केमिस्ट की दूकान में घुसकर निर्मम हत्या की गई जो कि वहां लोकप्रिय था और 1990 में भी हिम्मत से वहां टिका रहा था. एक सिख समुदाय की महिला प्राचार्य और एक हिंदू शिक्षक की गोली मारकर जान ले ली गई. आतंकवादी चुन-चुनकर हिंदुओं को मार रहे हैं ताकि इतनी दहशत बैठ पाए कि कोई हिंदू वापस घाटी में जाकर बसने की न सोचे. कश्मीर में मजदूरी करने अन्य राज्यों के लोग भी जाते हैं. आतंकी  उनकी भी जान ले रहे हैं दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में बिहार के 3 लोगों को गोली मार दी. ये सभी मजदूर थे. ऐसी हत्याओं के पीछे सोची समझी साजिश है. आतंकवाद फिर सिर उठाने लगा है और जानबूझकर गैर मुस्लिमों पर जान लेवा हमले किए जा रहे हैं. सरकार व सुरक्षा बलों को इस मामले में अत्यंत सख्ती दिखानी होगी आतंक को हर कीमत पर कुचलना होगा.