स्वतंत्रता संग्राम के दिनों को याद किया तो रोंगटे खड़े हो जाते है: दीनानाथ अमोणकर

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    पुणे : आजादी (Independence) के लिए उठ खड़े हुए हम युवाओं (Youth) के लिए वह रात एक सपने के सच होने जैसा था। अत्याचारी ब्रिटिश शासन (British Rule) को खदेड़कर देश स्वतंत्र होने वाला था। यह स्वतंत्रता दिवस अविस्मरणीय हो, इसलिए हर कोई काम में लगा था। लेकिन, हम गोवा (Goa) वासी पोर्तुगालीयों (Portuguese) के अधीन थे। इसलिए गोवा में स्वतंत्रता दिवस मनाना मुश्किल था। फिर भी हम युवाओं ने मेहता नाम के खादी की दुकान से तिरंगा झंडा मिला और हमने आजादी की पूर्व संध्या पर14 अगस्त 19947 की रात में 12 बजे झंडा फहराते हुए जश्न मनाया। यह अनुभव आजाद भारत का सूरज देखने वाले ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी दीनानाथ अमोणकर (Dinanath Amonkar) ने साझा किया। 

    ब्रिटिश शासन को नष्ट करने और देश को आजादी दिलाने के लिए हजारों युवाओं ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। कई को कैद कर लिया गया, कईयों ने पुलिस की लाठियां खाई। लाठियां से खाल उधेड दी, फिर भी हार नहीं मानी। यही ताकत, समर्पण और बलिदान देश की ताकत बना और 15 अगस्त 1947 को अंग्रेज देश छोड़कर स्वदेश चले गए। देश स्वतंत्र हो गया था। उसके बाद आजादी की यह लड़ाई गोवा में पुर्तगाल के खिलाफ और हैदराबाद में निजाम के खिलाफ शुरु रही। अन्याय के अँधेरे को कल का सूरज देखने दो। इस लक्ष्य के साथ युवाओं द्वारा दी गई लड़ाई साकार हो गई। 

    अखबारों को पढ़ना शुरू किया था 

    दिनानाथ अमोणकर ने बताया की, मेरा जन्म 29 जून 1929 को गोवा राज्य के पणजी में हुआ था। जब से मुझे समझ आई, तब से मुझे गुलामी का प्रत्यय आ रहा था। जब मैं लगभग 14 साल का था, तब मैंने हमारी दुकान पर आने वाले अखबारों को पढ़ना शुरू किया था। इससे प्रभावित होकर मैं भी उस समय स्ंवतत्रता की लड़ाई में कूद पड़ा। मैं राष्ट्रीय सेवा दल के माध्यम से सक्रिय हुआ। 

    मुंबई, पुणे में जो कुछ हो रहा था, उसे पढ़ और सुन कर हम प्रभावित हुए 

    देश पर अत्याचारी शासन करने वाले ब्रिटिश शासन के खिलाफ पूरे देश में गुस्से की लहर थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह की शुरुआत हुई। एक तरफ हिंसा थी, दूसरी तरफ असहयोग, सत्याग्रह जैसा चित्र था। कई नेता सभाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से जन जागरूकता फैला रहे थे। नेताओं द्वारा अखबार के जरीए लोगों को जागरुक किया जा रहा था। उनके जरिए हर घटना लोगों तक पहुंच रही थी। मुंबई, पुणे में जो कुछ हो रहा था उसे पढ़ और सुन कर हम प्रभावित हुए थे। आजादी की पूर्व संध्या पर गोवा में हर घर-घर में तिरंगा झंडा फहराया गया था। नागरिको ने बड़े उत्साह मे आजादी का जश्न मनाया। लेकिन, पुर्तगाली सरकार के डर से गोवा वासियों को घर में ही त्योहार मनाना पड़ा। उन दिनों को याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक ऊर्जा प्राप्त होती है, ऐसा स्वंतत्र सेनानी दीनानाथ अमोणकर ने बताया। 

    26 जनवरी 1955 से 20 अगस्त 1959 तक का समय अगवाद जेल में बिताया 

    देश को आजादी मिली। लेकिन हमारा हिस्सा, वैकल्पिक रूप से पुर्तगालियों के कब्जे में था। हम आजादी के महत्व को समझने लगे थे। हमारे युवा इसे पाने के लिए बैताब थे। हमारी लड़ाई को नागरिकों से शानदार प्रतिक्रिया मिल रही थी। मुझे याद है तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गोवा को भारत माता का अंग बताकर पुर्तगालियों को तुरंत हटा दिया जाएगा, ऐसा कहा था। हालाँकि, गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त करने के लिए एक लंबा संघर्ष करना पड़ा।  इसके लिए हमने कई आंदोलन किए। इसके कारण 26 जनवरी 1955 से 20 अगस्त 1959 तक की अवधि अगवाद जेल में बिताई। अंत में हमें आजादी मिली, हमारा संघर्ष सार्थक हुवा, इसके कारण संतुष्ट महसूस करते है।