निजी बैंकों की गड़बड़ियां रोकी जाएं

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सुभाषचंद्र अग्रवाल

देश में कई निजी बैंक बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और कदाचार कर रहे हैं, जिनमें से कुछ अनियमितताएं इन बैंकों की निरीक्षण रिपोर्टों में उजागर हुई हैं, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक को बैंकों की ऐसी निरीक्षण रिपोर्टों को आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। आरबीआई को सभी बैंकों की निरीक्षण रिपोर्टों को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करके मूल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करके सभी भ्रमों को दूर करना चाहिए। निजी क्षेत्र के बैंकों में जनता के धन की व्यापक मौजूदगी है, जिसे देखते हुए सभी निजी क्षेत्र के बैंकों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में होना चाहिए।  

बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 46ए के अनुसार सीएमडी जैसे उच्चतम पद तक के सभी कर्मचारी लोकसेवक हैं। हाल के वर्षों में आरबीआई को निजी क्षेत्र के एक प्रमुख बैंक पर कुछ समय के लिए पैसे निकालने पर प्रतिबंध लगाना पड़ा और एक अन्य प्रमुख निजी बैंक के पूर्व सीएमडी को बैंक के सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के गंभीर आरोप में गिरफ्तार किया गया है।  

इसी क्रम में निजी क्षेत्र का एक और बैंक बड़ी संख्या में गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के लिए बदनाम है, जबकि कुछ निजी क्षेत्र के बैंकों के शेयर मूल्यों में भारी उतार-चढ़ाव से इन बैंकों में सार्वजनिक धन की सुरक्षा को लेकर संदेह पैदा होता है। कई प्राइवेट बैंक अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए गिरवी रखी गई संपत्ति के वास्तविक बाजार मूल्य से अधिक सुरक्षित ऋण प्रदान करते हैं। इसे पूर्वव्यापी प्रभाव से एक नियम बनाकर रोका जाना चाहिए, गिरवी संपत्ति की बिक्री से वसूल की गई राशि से अधिक ऋण स्वीकृत करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।  
यह सामान्य बात है कि कई निजी बैंक अक्सर ऋण के डिफॉल्ट के मामले में अपनी सुविधा के अनुसार दुरुपयोग करने के लिए गारंटर के रूप में उधारकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित खाली कागजात, ऋण-किट और चेक प्राप्त करते हैं। आम तौर पर कर्ज लेने वाले कर्ज लेने की जल्दी में परिणाम को समझे बिना ऐसे खाली दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर देते हैं।

गलती करने वाले बैंक उधारकर्ताओं को ऋण किट की उपभोक्ता- प्रति भी नहीं देते हैं, जो इस प्रकार हमेशा ऐसे बैंकों के व्यावहारिक रूप से वित्तीय गुलाम होते हैं। प्रणाली यह होनी चाहिए कि विधिवत भरे हुए ऋण- किट और चेक की एक प्रति ऋण वितरण के सात दिनों के भीतर उधारकर्ताओं, गारंटरों को पंजीकृत डाक द्वारा भेजी जानी चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बैंक डिफॉल्ट के मामले में पहले खाली हस्ताक्षर किए गए किसी अन्य कागज का दुरुपयोग करने में सक्षम हो।
 
यही बात गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए भी लागू होनी चाहिए। नियम यह होना चाहिए कि सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) और राज्य संचालित निगमों (केंद्र और राज्य सरकार दोनों) के सभी बैंक खाते अनिवार्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ही होने चाहिए बल्कि उनके कर्मचारियों को भी साधारण बैंक हस्तांतरण के माध्यम से वेतन प्राप्त करने के लिए उसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की किसी शाखा में अपना वेतन-खाता रखना चाहिए। इसके बाद सरकारी कर्मचारी अपनी पसंद के किसी भी बैंक में धनराशि स्थानांतरित कर सकते हैं।