दो वक्त की रोटी के लिए गली-गली बेचते थे चूड़ियां, मेहनत कर आज बन गए IAS अफसर

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अगर कोई  व्यक्ति सच्ची लगन और निष्ठा से कोई काम करे तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। सफल होना मनुष्य के कर्म पर निर्भर करता है। लेकिन बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि लोगों का बैकग्राउंड उसकी सफलता और असफलता का कारण बनता है। पर यह बात बिलकुल गलत है। अपनी ज़िंदगी में वे लोग ही सफल होते हैं जिनका लक्ष्य साफ़ हो कि उन्हें करना क्या है। ऐस एमए आज हम आपको ऐसी ही एक व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कड़ी मेहनत कर आज उस मुकाम तक पहुँच गए हैं, जहाँ उनके परिवार को उन पर बहुत गर्व महसूस होता है। 

आज हम जिसके बारे में बात कर रहे हैं उनका नाम रमेश घोलप है। वर्तमान मे वह एक IAS अफसर हैं। उन्होंने यहाँ तक पहुंचने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है। उनकी यह कहानी हर एक व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है। IAS बनने के लिए उन्होंने बहुत से ऐसे काम भी किए हैं, जो लोगों की नज़रों में छोटे काम होते हैं। साथ ही बहुत सारी कठिनाइयों का भी सामना किया है। 

माँ के साथ बेचा करते थे चूड़ियां-
रमेश घोलप (Ramesh Gholap) का जन्म महाराष्ट्र (Maharashtra) के सोलापुर जिले के वारसी तहसील स्थित एक छोटा सा गांव महागांव में हुआ था। रमेश का ताल्लुख एक गरीब परिवार से था, उनका बचपन बहुत हीं गरीबी में बीता था। वह 2 वक्त की रोटी के लिए अपनी मां से साथ दिनभर चूडियां बेचा करते थे। लेकिन वे चूडियां बेचकर जो भी पैसे कमाते थे, उनके पिता शराब पीने में उड़ा देते थे। उनके पिता की साइकिल रिपेयरिंग की एक दुकान थी। रमेश के परिवार को एक वक्त का भोजन भी नसीब से मिल पता था। रमेश ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है और उनका पूरा सफर कठिनाइयों से ही भरा हुआ था। 

परीक्षा के एक माह पहले पिता का हुआ देहांत-
रमेश अपनी मां के साथ मौसी के इन्दिरा आवास में रहते थे। रमेश की 10वीं कक्षा की परीक्षा होने में सिर्फ एक महीने बचे थे तब किस्मत ने एक बार फिर उन्हें धोका दिया। परीक्षा के एक महीने पहले उनके पिता का देहांत हो गया था। यह दुखद खबर रमेश के लिए किसी सदमे से कम न था। पिता की मौत ने रमेश को अंदर झंझोर दिया था। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत कर 10वीं की परीक्षा दिया। रमेश ने परीक्षा में 88.50% अंक प्राप्त किए। जिसके बाद रमेश की मां ने उनके आगे की पढाई के लिए सरकारी ऋण योजना के तहत गाय खरीदने के लिए 18 हजार रुपये का कर्ज लिया।  

IAS बनने का था सपना, पैसों के लिए पेंटिंग का किया काम-
रमेश शुरुआत से ही एक IAS अफसर बनना चाहते थे। उन्होंने इस सपने को पूरा करने के लिए अपनी मां से कुछ पैसे लेकर पुणे चले गए। वहां उन्होंने कठिन परिश्रम करना शुरू कर दिया। रमेश वहाँ दिनभर काम करते और उससे पैसे इक्ट्ठा करते थे। उसके बाद रात में वह पढ़ाई किया करते थे। पुणे में पैसे कमाने के लिए रमेश दीवारों पर नेताओं की घोषणाएं, दुकान का प्रचार तथा शादी की पेंटिंग आदि का कार्य करते थे।

पहली कोशिश में रहे असफल, नहीं मानी हार-
UPSC की पहली कोशिश में रमेश के हाथ असफलता ही आई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और एक बार फिर इसकी तैयारी में लग गए। फिर उन्होंने साल 2011 में एक बार फिर UPSC की परीक्षा दी, जिसमें वे सफल रहे। रमेश ने इसमें 287वीं रैंक हासिल किया जो बेहद उनके लिए बहुत ख़ुशी की बात थी। वहीं उन्होंने राज्य सिविल सर्विसेज़ में पहला स्थान प्राप्त किया।

रमेश घोलप 4 मई 2012 को अधिकारी बन गए थे। जिसके बाद उन्होंने पहली बार उन गलियों में कदम रखा जहां वे मां के साथ चूड़ियां बेचा करते थे। वहां के ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। वहीं बीते वर्ष उन्होंने सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त कर SDO बेरेमो के रूप में कार्यरत हुए। जिसके बाद रमेश घोलप की नियुक्ति झारखंड के उर्जा मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में हुई है।

करते हैं बेसहारा लोगों की मदद-
रमेश ने बताते हैं कि वह जब भी किसी बेसहारा लोगों को देखते हैं तो, उनको उनकी मां की स्थिति याद आती है। जब वे अपनी पेंशन के लिए अधिकारियों के सामने विनती करती रहती थी। रमेश अब हर उन लोगों की मदद करते हैं जिन्हें किसी सहारे की ज़रूरत होती है। वह अपने संघर्ष को नहीं भूलते, बल्कि उन्हें याद रखकर लोगों की मदद करते हैं। रमेश अभी तक 300 से अधिक सेमिनार करके युवकों को प्रशासनिक परीक्षा में सफल होने के टिप्स भी दे चुके हैं।