आँखों की रोशनी खोने पर भी नहीं हारी हिम्मत, बनें देश के IAS अफसर

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हमारे शरीर का हर अंग बेहद महत्वपूर्ण होता है। कोई एक भी अंग अगर ठीक से काम न करे तो जीवन अधूरा सा होता है। लेकिन दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो इन समस्याओं का सामना करते हैं, लेकिन हार नहीं मानते हैं। कहते हैं न हमेशा वही लोग अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ते हैं जिनके सपनों में जान होती है। बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं होता है। अगर हौसलें मज़बूत हो तो आपको उड़ने से कोई रोक नहीं सकता है। इन सभी चीज़ों को सही साबित किया है उन्होंने, जिनके बारे में आज हम आपको हमारे इस आर्टिकल के द्वारा बता रहे हैं। 

यह कहानी है आईएएस (IAS) के. ललित की। ललित बचपन से ही देख नहीं पाते हैं। लेकिन उन्होंने बिना हारे कड़ी मेहनत करके पीएच श्रेणी में साल 2018 में यूपीएससी सीएसई परीक्षा पास की और साल 2019 बैच के आईएएस बन गए। ललित अपनी इस सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता और उन राइटर्स को देते हैं जो बचपन से उनके लिए स्क्राइब बने। आईएएस ललित का पूरा जीवन बहुत ही संघर्ष भरा है, क्योंकि वे शरीर के एक बहुत महत्वपूर्ण अंग आंखों के बिना जिंदगी गुजार रहे हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 

जन्म से नहीं थी यह समस्या –
ललित बताते हैं कि वह भी एक आम बच्चे की तरह ही जन्म हुआ था। लेकिन जब वह कक्षा एक में थे तब उन्हें दिखाई देने में थोड़ी समस्या होने लगी थी। जो की एक मेडिकल कंडीशन थी। इस कंडीशन में मरीज के आँखों की रौशनी धीरे-धीरे चली जाती है। फिर ललित को छटवीं कक्षा तक आते-आते एग्जाम खुद लिखने में  तकलीफ होने लगी और क्लास 8 से उन्होंने स्क्राइब लेना शुरू कर दिया। 

ललित और उनके परिवार के लिए यह किसी झटके से काम नहीं था। ललित के माता पिता ने उनके इस फिजिकल डिसएबिलिटी को ऐसे स्वीकारा जैसे कुछ हुआ ही न हो और अपने बच्चे में भी इतना कांफिडेंस इतनी पॉजटिविटी भरी की ललित ने कभी भी अपनी इस समस्या को कोसा नहीं और इस पर रोया भी नहीं। 

ललित इसपर कहते हैं कि वे आज जो भी हैं अपने माता-पिता की वजह से ही है। साथ ही वह बताते हैं कि उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और संघर्ष करते गए। जिसकी वजह से भी आज वह इस मुकाम तक पहुँच पाए हैं।

सामान्य स्कूल में पढ़े, एडमिशन मिलने में तकलीफ-
ललित बताते हैं कि, उनके पैरेंट्स ने हमेशा एक सामान्य स्कूल में और बच्चों के साथ ही पढ़ाया। उनके माता पिता ने कभी भी उन्हें किसी भी स्पेशल नीड्स वाले स्कूल में भर्ती नहीं करवाया था। उनके पेरेंट्स चाहते थे कि ललित बचपन से ही मेन स्ट्रीम कांपटीशन फेस करें और उसके लिए खुद को तैयार करें। हालांकि इस फैसले को बरकरार रखने में ललित के पिता को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, पर वे अपनी बात पर अडिग रहते थे कि ललित पढ़ेंगे तो सामान्य स्कूल में ही।

ललित के पिता रेलवे में सरकारी नौकरी करते थे, जिसकी वजह से उनके हर तीन-चार साल में ट्रांसफर हो जाता था। फिर जब वह नई जगह जाते तब ललित की स्पेशल नीड्स देखकर स्कूल वाले उन्हें एडमिशन देने से मना कर देते थे। 

ललित ने पहले तो सेंट्रल स्कूल से पढ़ाई की फिर हायर एजुकेशन के लिए उनके माता-पिता के साथ दिल्ली चले गए। इस बीच जहां-जहां उनके पापा का ट्रांसफर हुआ ललित के स्कूल बदलते रहे। वहीं ललित के दिल्ली जाने के पीछे यह कहानी है कि उनके पिता को पता चला कि वहां पर ऐसे स्टूडेंट्स के लिए हर मायने में ज़्यादा सुविधाएं हैं तो उन्होंने अपनी चीजों से समझौता किया और दिल्ली शिफ्ट हो गए। 

यूपीएससी की तैयारी में मां ने की बहुत मदद –
ललित कहते हैं कि यूपीएससी की तैयारी के समय उनके सामने बहुत सी परेशानियां आई थी। पहले तो मैटीरियल ही नहीं मिलता था, वह जैसे-तैसे ऑडियो बुक्स अरेंज करते थे। लेकिन उनकी माँ ने इसमें उनकी बहुत सहायता की। उन्होंने दिन-रात एक करके पढ़ाई की, ललित कहते हैं कि प्री के समय जब वे प्रैक्टिस करते थे तो पहले मां सारे प्रश्न पढ़कर सुनाती थी जिनके उत्तर समय के अंदर ललित देते थे और बाद में उनकी मां उत्तर भी बताती थी। जिसके बाद आठ घंटे लगातार बोलते-बोलते उनकी मां की आवाज़ भी चली जाती थी पर उन्होंने कभी उफ्फ नहीं की किया। पानी, कॉफी पीकर वह फिर काम पर लग जाया करती थी। 

ललित कहते हैं कि अगर आपका लक्ष्य साफ़ हो और नियत साफ हो, तो कुछ भी कठिन नहीं होता है। फिजिकल डिसएबिलिटी कुछ नहीं होती और उन जैसे डिसएबल लोग उन नॉर्मल लोगों से कहीं बेहतर होते हैं, जिनके जीवन में न कोई लक्ष्य होता है न उसे पाने की ज़िद।